महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
सत्यवती के बेटे
राजा शांतनु के मछुआरिन सत्यवती से दो बेटे हुए। बड़े का नाम चित्रांगद और छोटे का नाम विचित्रवीर्य रखा गया। भीष्म अपने छोटे भाइयों को बहुत चाहते थे। उन्होंने छुटपन से ही चित्रांगद को उत्तम शिक्षा देना शुरू किया। बेचारा चित्रांगद अभी पूरी तरह से जवान भी न हो पाया था कि बूढ़े शांतनु महाराज चल बसे। भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार चित्रांगद को हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठाया और उसे बड़े मनोयोग के साथ राजनीति सिखाने लगे। राजा चित्रांगद बड़े ही नीतिकुशल, न्यायपरायण, धीर-वीर और गम्भीर पुरुष थे। अपने बड़े भाई भीष्म-गंगादत्त की सलाहों पर चलकर उन्होंने प्रजा को सुखी बनाने के लिए बड़ा चौकस प्रबन्ध किया। यही नहीं, उन्होंने दूर-दूर तक दुष्ट राजाओं का संहार किया और इस प्रकार चारों ओर उनके प्रताप की बड़ी महिमा फैल गई। गन्धर्वों का एक राजा बड़ा प्रतापी था। वह मायावी युद्ध लड़ना जानता था। मायावी युद्ध उसे कहते हैं जो तरह-तरह के नये-नये चकमे देकर लड़ा जाता है। पुराने समय में असुर लोग तरह-तरह के बड़े चेहरे लगा लिया करते थे जो देखने में बहुत ही भयानक लगते थे। कहीं पर उनकी सेना घास के बड़े-बड़े गट्ठों में अपने आपको छुपाकर इस तरह से मोरचा बांधकर बैठ जाती थी कि शत्रु समझने लगता कि यहाँ घास का जंगल है। जैसे ही सेना बेझिझक होकर उस जंगल के पास से गुजरने लगती, वैसे ही यह लोग घास के गट्ठे फेंक-फेंककर उन पर अचानक आक्रमण कर देते थे। इस प्रकार माया-युद्ध लड़ने की बड़ी-बड़ी तरकीबें थीं। असुर, गन्धर्व, राक्षस आदि चूंकि आपस में रिश्तेदार भी हुआ करते थे, इसलिए अपनी नई-नई मायाओं को वे एक दूसरे को सिखाया भी करते थे। गन्धर्व राजा बहुत ही बड़ा मायावी था और बेचारे राजा चित्रांगद सीधे-साधे थे। फिर भी उन्होंने तीन वर्ष युद्ध करके गन्धर्व राजा के छक्के छुड़ा दिये। पर अन्त में वे बेचारे गन्धर्वों की माया के शिकार होकर मारे गए। हस्तिनापुर के राजमहलों में कुहराम मच गया। बेचारी सत्यवती के ऊपर तो दुख का पहाड़ ही टूट पड़ा। पर भीष्म ने उन्हें और सबको समझा-बुझा कर धीरज बंधाया तथा चित्रांगद के छोटे भाई विचित्रवीर्य को राजगद्दी दे दी।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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