महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
भीष्म की कथाएं
बाणों की शैय्या पर लेटे हुए तपस्वी और ब्रह्मचारी महावीर भीष्म पितामह शान्त स्वर में सुनाने लगे। हे पुत्र! हज़ारों वर्ष पहले एक समय ऐसा भी था जब हमारी मनुष्य जाति और पशु जाति के आचरण में कोई खास भेद नहीं था। मनुष्य तब तक सही ढंग से सोचना-विचारना भी नहीं सीख सका था। सब लोग पशुओं की तरह ही एक-दूसरे से लड़ते और आपस में मारकाट मचाया करते थे। उन्हीं के बीच में एक ऐसा मनुष्य भी हुआ जिसने सही ढंग से सोचना-विचारना सीखा। उसने मनुष्यों को सभ्यता का पहला पाठ पढ़ाया। वह मनुष्य जाति का नेता था। इसीलिए लोगों ने उसे मनु कहा है। यह मनु चूंकि स्वयं ही अपने तप से ज्ञानी और संस्कारवान बने हुए थे, इसलिए लोगों ने उन्हें स्वायंभुव मनु कहकर पुकारा। उस जमाने में मनुष्य जाति में रिश्ते-नाते नहीं होते थे। जैसे और जानवर बच्चे पैदा होने के बाद उसके बड़े होने तक ही बच्चे की रखवाली करते हैं और बाद में अपना रिश्ता-नाता भूल जाया करते हैं, उसी तरह मनुष्य भी किया करता था। लेकिन स्वयंभु मनु की स्त्री का नाम शतरूपा था। शतरूपा के दो बेटे थे, एक का नाम प्रियव्रत था और दूसरे का नाम उत्तानपाद। मनु और शतरूपा ने अपने बेटों को केवल पाल-पासे बड़ा ही नहीं किया वरन् उन्होंने उन्हें अपने बाद मनुष्य जाति के नेता बनने लायक अच्छी शिक्षा भी दी। उस जमाने में खेती-बारी तो होती नहीं थी। लोग या तो शिकार करके मांस खाते थे अथवा जंगलों में अपने आप पैदा होने वाले स्वादिष्ट फलों को खाकर जीवित रहते थे। शिकार आसानी से नहीं मिला करते थे, लेकिन फलों से वृक्ष सदा लदे रहते थे। इसीलिये वे लोग पेड़ों को कल्पवृक्ष कहा करते थे। मनु महाराज के पहले तक कोई अपना शरीर ढकना जानता ही न था। मनु महाराज ने ही उन्हें अपने अंगों को ढकना सिखलाया। अलसी से रेशों से अथवा मूंज घास से रस्सी बटकर के अपनी कमर में बांध लेते और उस पर पत्तों की लंगोटी लगा लिया करते थे। उन्होंने पत्थरों और हड्डियों के नुकीले हथियार बनाना, शत्रुओं पर सफल आक्रमण करने की तरकीब बतलाना, संकट के समय एकजुट होना आदि अच्छी-अच्छी बातें सिखलायी। बहुत दिनों तक मनुष्य जाति के नेता पद को सुशोभित करके मनु और शतरूपा जंगल को चले गये। उन्होंने अपना राज-पाट अपने दोनों लड़कों को सौंप दिया। प्रियव्रत और उनके बेटे तो अपने पिता के स्थान में ही रहे, मगर उत्तानपाद वहाँ से चलकर उस जगह आ पहुँचे जहाँ आजकल परास्य, गान्धार आदि देश बसे हुए हैं। उन्होंने उस इलाके में रहने वाली मनुष्य जाति को सभ्य बनाकर उनके ऊपर राज्य करना आरम्भ कर दिया। उत्तानपाद धीरे-धीरे अपना राज्य बढ़ाकर उस जगह तक फैला लिया, जिसे आज हम मथुरा कहते हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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