महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
भीम दु:शासन युद्ध
जिस समय अर्जुन युधिष्ठिर के शिविर में बैठे थे उस समय भीम रण-क्षेत्र में दु:शासन के साथ उलझ रहे थे। दोनों एक दूसरे पर कठिन से कठिन प्रहार कर रहे थे। भीम के तीरों से उत्तेजित होकर दु:शासन ने एक करारी शक्ति भीम पर खींच मारी। भीम अचेत होकर अपने रथ पर गिर पड़े। सारथी घबराकर उनका रथ लेकर भागने लगा किन्तु भीमसेन भला क्या देर तक बेहोश रह सकते थे? उन्हें तुरंत ही होश आ गया और वे दहाड़ते हुए उठ खड़े हुए। उन्होंने एक डांट अपने सारथी को लगाई। और फिर दु:शासन पर गरजे, "अरे नीच, भागा कहां? ठहर तो सही।" यह कह कर उन्होंने अपने धनुष पर तीर चढ़ाया। दु:शासन ने भीम को जो इस तरह से आक्रमण करते हुए देखा तो दस भयानक शक्ति बाण एक साथ धनुष पर चढ़ा कर मारे। लेकिन भीम ने उन्हें रास्ते में ही काट दिया और कहा- "अरे अंधे के बेटे, तूने जी भर कर मुझ पर प्रहार कर लिये। मेरी गदा का एक प्रहार तू भी झेल।" यह कह कर ज्योंही भीमसेन ने अपनी गदा उठायी त्योंही दु:शासन भी अपनी गदा उठाते हुए लपका। भीमसेन ने अपनी गदा की चोट से धृतराष्ट्र के बेटे की गदा को तोड़ डाला और भीम ने फिर दूसरा वार करते हुए कहा- "अरे दुष्ट, भगवान का नाम ले और मरने को तैयार हो जा आज तेरी छाती का खून पी कर मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी करुंगा।" भीम की गदा सीधे जाकर दु:शासन की खोपड़ी पर ही लगी। उसका सिर फूट की तरह से खिल गया और वह अपने रथ से लुढ़क कर धरती पर फिर गया। भीम ने तुरंत ही अपने रथ से उतर कर उसकी छाती में अपनी तलवार घुसेड़ दी। उससे निकलने वाले खून की दो अंजुली भर कर वह अपने होठों तक ले गये और फिर दहाड़ने लगे। जब द्रौपदी का चीर दु:शासन ने उतारा था तब भीम ने दु:शासन की छाती का खून पीने की प्रतिज्ञा भरी सभा में की ही लेकिन इस समय भयंकर क्रोध में होते हुए भी वे वीभत्स न हो सके। उन्होंने लहूपान न किया केवल होठों से छुआकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली। पर उनके दहाड़ने और होठ-ठोढ़ी के लाल हो जाने से लोग यही समझे कि लहू पिया है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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