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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
मामा भान्जे की भेंट
शाम हुई। लड़वैये अपनी-अपनी छावनियों में लौट गये। नहा धोकर ताजे होने लगे। घायलों की मरहम-पट्टी होने लगी। वीरों की थकान उतारने के लिए चतुर नाऊ बदन दबाने लगे और कौरव पाण्डव पक्ष के वीर एक-दूसरे से मिलने के लिए एक-दूसरे की छावनियों में आने-जाने लगे। चारों ओर नाच-गाने और हंसी-मजाक की महफिलें जुड गईं। युधिष्ठिर चुपचाप शल्य मामा से मिलने के लिए गये। मामा उन्हें देखकर प्रसन्न हुए पूछा- “कहो कैसे आये।” “आपसे एक भीख मांगने आया हूँ मामा, कर्ण युद्ध-क्षेत्र में अपना सारथी बनने के लिए यदि आप से प्रार्थना करे तो इंकार मत कीजिएगा।” शल्य बोले- “मैं एक सूत के बेटे का सारथी भला क्यों बनूंगा? “कर्ण अर्जुन से लड़ने के लिए आप ही को अपना सारथी बनायेगा मामा क्योंकि वह जानता है कि रथ चलाने की विद्या में आप ही श्रीकृष्ण से टक्कर ले सकते हैं।” “आप केवल इतना ही कीजिएगा मामा कि रास्ते भर अपनी बातों से कर्ण को निःतेज करते रहियेगा कि कर्ण सुनकर डाह के सारे तड़प उठे। अर्जुन की रक्षा के लिए मैं आप से यही प्रार्थना करने आया हूँ।” शल्य ने कहा- “वैसे तो यह बड़ा अनुचित कार्य है कि जिसका सारथी बनूं उसी को निःतेज करूं, फिर भी अपने भान्जों के लिए मैं ऐसा करने का वचन देता हूँ।” धर्मराज युधिष्ठिर यह सुनकर बड़े ही प्रसन्न हुए और अपने शिविर में लौट आये। जासूसों ने दुर्योधन को यह खबर दे दी। वह तुरंत ही घबराकर शल्य मामा के पास आया। उसने पूछा- “मामा! युधिष्ठिर क्यों आए थे?” शल्य ने चतुराई भरा उत्तर दिया, वह बोला- “युधिष्ठिर यह कहने आया था कि यदि तुम मुझे कर्ण का सारथी बनाने का प्रस्ताव करो तो मैं उसे इंकार कर दूं।” “तो फिर आपने क्या उत्तर दिया मामा?” दुर्योधन ने घबराकर पूछा। “मैंने साफ कह दिया कि इस समय मैं कौरव पक्ष में लड़ रहा हूँ। दुर्योधन यदि मुझे कर्ण का सारथी बनाएगा, तो मैं बेझिझक होकर उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लूंगा।” प्रसन्न होकर दुर्योधन ने शल्य मामा के पैर छू लिये और कहा- “मामा! आप धन्य हैं। अर्जुन वीर तो अवश्य हैं, पर इस युद्ध में उसे जो विशेष यश मिल रहा है उसका कारण श्रीकृष्ण की अद्भुत रथ-संचालन-कला ही है। श्रीकृष्ण का मुकाबला तो केवल आप ही कर सकते हैं मामा, और मेरी यह प्रार्थना है कि आप मुझसे भी ऐसा करना स्वीकार कर लें।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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