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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा
जयद्रथ के मारे जाने से कौरव सेना का मनोबल टूट गया। दुर्योधन को लगा कि अगर यही दशा रही तो हमारी सेना दो ही चार दिनों में मैदान छोड़कर भागने लगेगी। दुर्योधन को अपनी सेना का मनोबल उठाने के लिए शीघ्र ही कुछ न कुछ करना चाहिए, लेकिन वह क्या करे यह उसकी समझ में नहीं आता था। घबराहट में वह अपने परम मित्र कर्ण के पास गया और बोला- “हे सखा, पितामह और आचार्य ने हमें कहीं का नहीं रखा। वह लोग हमें दिखाने के लिए तो प्रबल युद्ध करते रहे, परन्तु हक़ीकत में वे लोग पाण्डवों को बचाने की चिन्ता भी बराबर करते रहे। पितामह तो खैर, जो करना था सो कर गुजरे, लेकिन वह बुढऊ तो हमारी लुटिया ही डुबो देंगे। हे कर्ण, इसीलिए मैंने अब यह निश्चय किया है कि तुम हमारे सेनापति बनो। मैं अब इन बुड्ढों से ऊब गया हूँ।” कर्ण ने समझाते हुए कहा- “हे मित्र, सुयोधन आज के युद्ध में निराशा हाथ लगने से यों अधीर होकर तुम अन्यायी न बनो। गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन को भले ही प्यार करते हों, पर वे जी जान से लड़ रहे हैं। उन्होंने अर्जुन को घेरने के लिए दोनों ही बार बड़ी कठिन व्यूह रचना की थी, लेकिन दुर्भाग्य से हमारे दांव बेकार गये। न युधिष्ठिर ही पकड़ा जा सका और न अर्जुन ही को सजाया जा सका। खैर, कोई हर्ज नहीं, अभी तो मैं मौजूद हूँ। तुम्हारे साथ बड़े योद्धा लड़ रहे हैं। तुम चिन्ता मत करो। लेकिन द्रोणाचार्य के रहते मै सेनापति नहीं बनूंगा। आचार्य की इतनी महिमा है कि उन्हें हटाने से हमारी सेना में फूट पड़ने का भय भी उत्पन्न हो सकता है। तुम एक बार जाकर आचार्य को जोश दिलाओ।” कर्ण की सलाह मानकर दुर्योधन द्रोणाचार्य के पास गया। उस दिन की हार से आचार्य बहुत उदास थे। दुर्योधन ने वहाँ जाकर उन्हें जो जलीकटी बातें सुनाई तो वे चिढ़ उठे, और कहा- “सुयोधन तुम्हारी विजय के लिए मैं जी जान से लड़ रहा हूँ परन्तु तुम मुझसे सन्तुष्ट नहीं हो। इसे मैं अपने दुर्भाग्य के सिवा और क्या कहूँ। याद रखों, विजय केवल अस्त्र-शस्त्रों या बाहुबल से ही नहीं मिला करती, उसके लिए सत्य और न्याय का बल भी होना चाहिए। पाण्डवों के साथ सत्य भी है और न्याय भी। इसलिए तुम चाहे लाख जतन करो पर अन्त में विजय पाण्डवों को ही मिलेगी। जहाँ तक मेरी ईमानदारी का प्रश्न है, उसके प्रमाण मैं तुम्हें अपनी ओर से भरपूर दे चुका हूँ। इतना करने के बाद भी मैं यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि कल ऐसा युद्ध करूंगा कि या तो मैं ही जीवित बचूंगा या फिर अर्जुन ही बचेगा।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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