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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अभिमन्यु का पराक्रम
इधर द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना कर डाली। चक्रव्यूह को देखकर पाण्डवों के छक्के छूटने लगे। युधिष्ठिर ने कहा- “चक्रव्यूह भेदना अर्जुन के सिवा और किसी के बस की बात नहीं है और वह इस समय यहाँ से बहुत दूर हैं। यह निश्चय ही दुर्योधन और द्रोणाचार्य जी की गहरी चाल है। अर्जुन संसप्तकों से युद्ध करते ही रह जायेंगे और अपने चक्रव्यूह की मोर्चेबन्दी से हमारी सेना को जकड़ कर द्रोणाचार्य जी निश्चय ही आज मुझे पकड़ने में सफल हो जायेंगे।” भीम आदि सभी योद्धा युधिष्ठिर की बात सुनकर चुप रहे। सब जानते थे कि एक से बड़े वीर होने पर भी चक्रव्यूह तोड़ने में कोई सफन न हो सकेगा। शास्त्र को केवल शास्त्र ही काट सकता है और ऐसे कठिन व्यूह भेदने का विधान अर्जुन के सिवा और कोई नहीं जान सकता। मण्डली में उदासी देखकर सुभद्रा और अर्जुन का बेटा अभिमन्यु बोला- “तात, आप लोग चिन्ता क्यों करते हैं। मैं यद्यपि पूरी तौर से चक्रव्यूह भेदने की तरकीब नहीं जानता हूँ फिर भी एक बार पिता जी से उसे भेदने की कुछ बातें मैंने अवश्य सुनी थीं। आप विश्वास रखें मैं इस व्यूह का भेदन अवश्य कर सकूंगा।” अपने 16 वर्ष के नौजवान भतीजे की बातें सुनकर युधिष्ठिर आदि को यह तो विश्वास न हो सका कि वह द्रोणाचार्य की कठिन व्यूह-कला को काट सकेगा। परन्तु उसके आत्मविश्वास से वे सभी बहुत प्रसन्न हुए। मरता क्या न करता वाली स्थिति में युधिष्ठिर ने अभिमन्यु को चक्रव्यूह भेदने की आज्ञा दे दी। इस व्यूह-रचना के कारण पाण्डव सेनाओं में उस दिन बड़ी ही निराशा फैली हुई थी। लेकिन अभिमन्यु अर्जुन का खरा बेटा था। उसने द्रोणाचार्य के बनाये हुए कठिन व्यूह को उस दिन कई जगह से भेदा। यह देखकर द्रोणाचार्य बहुत बौखलाए। वे स्वयं उससे लड़ने के लिए सामने आये। अभिमन्यु ने उन्हें आता देखकर उनके रथ के आगे भूमि पर पांच बाण एक साथ मारे। इस प्रकार उसने अपने पिता के गुरु को प्रणाम किया और कहा- “महात्मन्! आपके प्रिय शिष्य अर्जुन का पुत्र आपको प्रणाम करता है।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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