महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
भीष्म की शर-शैय्या
इस तरह दधीचि के त्याग और पुरागकार ऋषि-मुनियों की उदारता का ध्यान करके अब बाणों की शैय्या पर लेटे हुए परमवीर और धर्मात्मा भीष्म पितामह के त्याग और उदारता का ध्यान करो। तनिक सोचो तो सही कि जिसके पोते और सगे सगे-सम्बन्धी युद्ध-क्षेत्र में शत्रु बनकर आपस में ही मार-काट मचा रहे हों उस आदमी के मन पर भला क्या बीत रही होगी? माता सत्यवती से पैदा होने वाले अपने भाइयों और उनके बाल-बच्चों को राज-पाट देने के लिये ही भीष्म पितामह ने आजन्म कुंवारे रहने की कठिन प्रतिज्ञा की थी। जिनके लिए उन्होंने महात्याग किया, वही आपस में लड़कर अपना सत्यानाश कर रहे थे। सारे उत्तर भारत में जगह-जगह पर घमासान युद्ध मचा हुआ है। अभी-अभी महाबली भीमसेन ने कलिंगराज श्रुतायु, राजकुमार केतुमान, शक्रदेव आदि बड़े-बड़े वीरों को परास्त किया है। अपने नेताओं के मारे जाने से कलिंग कायरों की तरह से इधर-उधर भाग रही है और भीमसेन उस सेना के हाथियों और घोड़ों को मार-मार कर उनमें ऐसी घबराहट भर रहे हैं कि वे सब चीखते-चिंघाड़ते हुए अपनी ही सेना के भगोड़े सिपाहियों को कुचल रहे हैं। एक ओर का युद्ध समाप्त हो रहा है तो दूसरी दिशा में गरमा रहा है। यह देखो, द्रौपदी के भाई महासेनापति धृष्टद्युम्न अकेले ही तीन-तीन महारथियों से मोर्चा ले रहे हैं। द्रोणाचार्य के बेटे महावीर अश्वत्थामा, उनके मामा कृपाचार्य और नकुल-सहदेव के मामा मद्रराज शल्य अपनी-अपनी युद्ध-कला का कमाल दिखला रहे हैं। जहाँ इन तीनों में किसी एक से भी मोर्चा लेना कठिन था, वहाँ प्रतापी धृष्टद्युम्न उनसे एक साथ लड़ रहे हैं। अश्वत्थामा के रथ में बड़े ही नायाब घोड़े जुते हुए थे। वे ऐसे सुशिक्षित और चतुर थे कि अपनी चपल गति से वे अपने मालिक पर किये गये दुश्मनों के निशानों को चुकवा दिया करते थे, इसलिए अश्वत्थामा के घोड़ों की बड़ी ख्याति थी। चतुर धृष्टद्युम्न ने इसलिए सबसे पहले उन घोड़ों को ही अपने तीरों का निशाना बनाया। घोड़े मारे गये लेकिन अश्वत्थामा भी कुछ कम चालाक नहीं थे। रथ के निकम्मा होने पर वे झपटकर महाराज शल्य के रथ पर जा बैठे और महाक्रोध में भर कर उन्होंने धृष्टद्युम्न पर बाण बरसाने शुरू किये। धृष्टद्युम्न का रथ महारथी वीरों की बाण-वर्षा के घेराव में आ गया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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