महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 193 श्लोक 1-22

त्रिनवत्यधिकशततम (193) अध्‍याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्‍यान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिनवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद

दुर्योधन के पूछने पर भीष्‍म आदि के द्वारा अपनी-अपनी शक्ति का वर्णन

संजय कहते हैं- राजन! जब रात बीती और प्रभात हुआ, उस समय आपके पुत्र दुर्योधन ने सारी सेना के बीच में पुन: पितामह भीष्‍म से पूछा-। ‘गंगानन्दन! यह जो पाण्‍डवों की सेना युद्ध के लिये उद्यत है। इसमें बहुत-से पैदल, हाथीसवार और घुड़सवार भरे हुए हैं। यह सेना बड़े-बड़े़ महारथियों एवं उनके विशाल रथों से व्याप्त है। लोकपालों के समान महापराक्रमी एवं महाधुनर्धर, भीमसेन, अर्जुन और धृष्टद्युम्न आदि वीर इस सेना की रक्षा करते हैं। यह उछलती हुई तरंगों से युक्त समुद्र की भाँति दुर्धर्ष प्रतीत होती है। इसे आगे बढ़ने से रोकना असम्भव है तथा बड़े-बड़े़ देवता भी इस महान युद्ध में इस सैन्य-समुद्र को क्षुब्ध नहीं कर सकते। ‘महातेजस्वी गंगानन्दन! आप कितने समय में इस सारी सेना का विध्‍वंस कर सकते हैं? महाधनुर्धर द्रोणाचार्य, अत्यन्त बलशाली कृपाचार्य, युद्ध की स्पृहा रखने वाले कर्ण अथवा द्विजश्रेष्‍ठ अश्वत्थामा कितने समय में शत्रुसेना का संहार कर सकते हैं; क्योंकि मेरी सेना में आप ही सब लोग दिव्यास्त्रों के ज्ञाता हैं। ‘महाबाहो! मैं यह जानना चाहता हूं, इसके लिये मेरे हृदय में सदा अत्यन्त कौतूहल बना रहता है। आप मुझे यह बताने की कृपा करें।'

भीष्‍मजी ने कहा- कुरुश्रेष्‍ठ! पृथ्‍वीपते! तुम जो यहाँ शुत्रओं के बलाबल के विषय में पूछ रहे हो, यह तुम्हारे योग्य ही है। राजन! महाबाहो! युद्ध में जो मेरी सबसे अधिक शक्ति है, मेरे अस्त्र-शस्त्रों का तथा दोनों भुजाओं का जितना बल है, वह सब बताता हूं, सुनो। साधारण लोगों के साथ सरलभाव से ही युद्ध करना चाहिये। जो लोग मायावी हैं, उनका सामना माया युद्ध से ही करना चाहिये। यही धर्मशास्त्रों का निश्‍चय है। महाभाग! मैं प्रतिदिन पाण्‍डवों की सेना को पहले अपने दैनिक भाग में विभक्त करके उसका वध करूंगा। महाद्युते! दस-दस हजार योद्धाओं का तथा एक हजार रथियों का समूह मेरा एक भाग मानना चाहिये। भारत! इस विधान से मैं सदा उद्यत और संनद्ध होकर उस विशाल सेना को इतने ही समय में नष्‍ट कर सकता हूँ।भारत! यदि मैं युद्ध में स्थित होकर लाखों वीरों का संहार करने वाले अपने महान अस्त्रों का प्रयोग करने लगूं तो एक मास में पाण्‍डवों की सारी सेना को नष्‍ट कर सकता हूँ। संजय बोले- राजेन्द्र! भीष्‍म का यह वचन सुनकर राजा दुर्योधन ने आंगिरस ब्राह्मणों में सबसे श्रेष्‍ठ द्रोणाचार्य से पूछा- ‘आचार्य! आप कितने समय में पाण्‍डुपुत्र युधिष्ठिर के सैनिकों का संहार कर सकते हैं?’

यह प्रभु सुनकर द्रोणाचार्य हंसते हुए से बोले- ‘महाबाहो! अब तो मैं बूढा़ हो गया, मेरी प्राणशक्ति और चेष्‍टा कम हो गयी, तो भी अपने अस्त्र-शस्त्रों की अग्नि से पाण्‍डवों की विशाल वाहिनी को भस्म कर दूंगा। ‘जैसे शान्तनुनन्दन भीष्‍म एक मास में पाण्‍डव-सेना का विनाश कर सकते हैं, उसी प्रकार और उतने ही समय में मैं भी कर सकता हुं, ऐसा मेरा विश्‍वास है। यही मेरी सबसे बड़ी शक्ति है और यही मेरा अधिक-से-‍अधिक बल है’। कृपाचार्य ने दो महीनों में पाण्‍डव-सेना के संहार की बात कही; परंतु अश्वत्थामा ने दस ही दिनों में शत्रुसेना के संहार की प्रतिज्ञा कर ली। बड़े-बड़े़ अस्त्रों के ज्ञाता कर्ण ने पांच ही दिनो में पाण्‍डव-सेना को नष्‍ट करने की प्रतिज्ञा की। सूतपुत्र का यह कथन सुनकर गंगानन्दन भीष्‍मजी ठहाका मारकर हंस पड़े और यह वचन बोले- ‘राधापुत्र! जब तक युद्धभूमि में शंख, बाण और धनुष धारण करने वाले श्रीकृष्‍ण सहित अर्जुन को तुम एक ही रथ से आते हुए नहीं देखते और जब तक उनके साथ तुम्हारी मुठभेड़ नहीं होती, तभी तक ऐसा अभिमान प्रकट करते हो, तुम इच्छानुसार और भी ऐसी बहुत-सी बहकी-बहकी बातें कह सकते हो।'

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत अम्बोपाख्‍यानपर्व में भीष्‍म आदि के द्वाराअपनी शक्ति का वर्णनविषयक एक सौ तिरानबेवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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