महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 163 श्लोक 17-41

त्रिष्‍टयधिकशततम (163) अध्‍याय: उद्योग पर्व (उलूकदूतागमनपर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिष्‍टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-41 का हिन्दी अनुवाद
  • दुर्योधन! तू अभिमान, दर्प, क्रोध, कटुभाषण, निष्‍ठुरता, अहंकार, आत्‍मप्रशंसा, क्रूरता, तीक्ष्‍णता, धर्मविद्वेष, अधर्म, अतिवाद, वृद्ध पुरुषों के अपमान तथा टेढ़ी आँखों से देखने का और अपने समस्‍त अन्‍याय एवं अत्‍याचारों का घोर फल शीघ्र ही देखेगा। (17-19)
  • मूढ़ नारधम! भगवान श्रीकृष्ण के साथ मेरे कुपित होने पर तू किस कारण से जीवन तथा राज्‍य की आशा करता है। (20)
  • भीष्‍म, द्रोणाचार्य तथा सूतपुत्र कर्ण के मारे जाने पर तू अपने जीवन, राज्‍य तथा पुत्रों की रक्षा की ओर से निराश हो जायेगा। (21)
  • सुयोधन! तू अपने भाइयों और पुत्रों का मरण सुनकर और भीमसेन के हाथ से स्‍वयं भी मारा जाकर अपने साथी को याद करेगा। (22)
  • शकुनि पुत्र! मैं दूसरी बार प्रतिज्ञा करना नहीं जानता। तुझसे सच्‍ची बात कहता हूँ। यह सब कुछ सत्‍य होकर रहेगा। तत्‍पश्‍चात युधिष्ठिर ने भी धूर्त जुआरी के पुत्र उलूक से इस प्रकार कहा- वत्‍स उलूक! तू दुर्योधन के पास जाकर मेरी यह बात कहना- (23-24)
  • सुयोधन! तुझे अपने आचरण के अनुसार ही मेरे आचरण को नहीं समझना चाहिये। मैं दोनों के बर्ताव का तथा सत्‍य और झूठ का भी अन्‍तर समझता हूँ। (25)
  • मैं तो कीड़ों और चीटियों को भी कष्‍ट पहुँचाना नहीं चा‍हता; फिर अपने भाई-बन्‍धुओं अथवा कुटुम्‍बीजनों के वध की कामना किसी प्रकार भी कैसे कर सकता हूँ। (26)
  • परंतु तेरा मन लोभ और तृष्‍णा में डूबा हुआ है। तू मूर्खता के कारण अपनी झूठी प्रशंसा करता है और भगवान श्रीकृष्‍ण के हितकारण वचन को भी नहीं मान रहा है। (28)
  • अब इस समय अधिक कहने से क्‍या लाभ तू अपने भाई-बन्‍धुओं के साथ आकर युद्ध कर। (29)
  • उलूक! तू मेरा अप्रिय करने वाले दुर्योधन से कहना- तेरा संदेश सुना और उसका अभिप्राय समझ लिया। तेरी जैसी इच्‍छा है, वैसा ही हो। (30)
  • तदनन्‍तर भीमसेन ने पुन: राजकुमार उलूक से यह बात कही- उलूक! तू दुर्बुद्धि, पापात्‍मा, शठ, कपटी, पापी तथा दुराचारी दुर्योधन से मेरी यह बात भी कह देना। (31)
  • नराधम! तुझे या तो मरकर गीध के पेट में निवास करना चाहिये या हस्तिनापुर में जाकर छिप जाना चाहिये। मैंने सभा में जो प्रतिज्ञा की है, उसे अवश्‍य सत्‍य कर दिखाऊंगा। यह बात मैं सत्‍य की ही शपथ खाकर तुझसे कहता हूँ। (32)
  • मैं युद्ध में दु:शासन को मारकर उसका रक्‍त पीऊँगा और तेरे सारे भाइयों को मारकर तेरी जाँघें भी तोड़कर ही रहूंगा। सुयोधन! मैं धृतराष्‍ट्र के सभी पुत्रों की मृत्‍यु हूँ। (33)
  • इसी प्रकार सारे राजकुमारों की मृत्‍यु का कारण अभिमन्‍यु होगा, इसमें संशय नहीं है। मैं अपने पराक्रम द्वारा तुझे अवश्‍य संतुष्‍ट करूंगा। तू मेरी एक बात और सुन ले। (35)
  • जनमेजय! तत्‍पश्‍चात नकुल ने भी इस प्रकार कहा- उलूक! तू करुकुल कलंक धृतराष्‍ट्र पुत्र दुर्योधन से कहना, तेरी कही हुई सारी बातें मैंने यथार्थरूप से सुन लीं। कौरव! तू मुझे जैसा उपदेश दे रहा है, उसके अनुसार ही मैं सब कुछ करूंगा। (37-38)
  • राजन तदनन्‍तर सहदेव ने भी यह सार्थक वचन कहा- महाराज दुर्योधन! आज जो तेरी बुद्धि है, वह व्‍यर्थ हो जायेगी। इस समय हमारे इस महान क्‍लेश का जो तू हर्षोत्‍फुल्‍ल होकर वर्णन कर रहा है, इसका फल यह होगा कि तू अपने पुत्र, कुटुम्‍बी तथा बन्‍धुजनों सहित शोक में डूब जायेगा। (39-40)
  • तदनन्‍तर बूढ़े राजा विराट और द्रुपद ने उलूक से इस प्रकार कहा- उलूक! तू दुर्योधन से कहना, राजन! हम दोनों का विचार सदा यही रहता है कि हम साधु पुरुषों के दास हो जायें। वे दोनों हम विराट और द्रुपद दास हैं या अदास; इसका निर्णय युद्ध में जिसका जैसा पुरुषार्थ होगा, उसे देखकर किया जायेगा। (41)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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