महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 76 श्लोक 1-19

षट्सप्‍ततितम (76) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

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महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: षट्सप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन के द्वारा वज्रदत्त की पराजय

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- भरतश्रेष्ठ! जैसे इन्‍द्र का वृत्रासुर के साथ युद्ध हुआ था, उसी प्रकार अर्जुन का राजा वज्रदत्त के साथ तीन दिन तीन रात युद्ध होता रहा। तदनन्‍तर चौथे दिन महाबली वज्रदत्त ठहाका मारकर हँसने लगा और इस प्रकार बोला- ‘अर्जुन! अर्जुन! खड़े रहो! आज मैं तुम्‍हें जीवित नहीं छोड़ूँगा। तुम्‍हें मारकर पिता का विधि पूर्वक तर्पण करूँगा। मेरे वृद्ध पिता भगदत्त तुम्‍हारे बाप के मित्र थे, तो भी तुमने उनकी हत्‍या की। मेरे पिता बूढ़े थे, इसलिये तुम्‍हारे हाथ से मारे गये। आज उनका बालक मैं तुम्‍हारे सामने उपस्‍थित हूँ; मेरे साथ युद्ध करो।’

कुरुनन्‍दन! ऐसा कहकर क्रोध में भरे हुए राजा वज्रदत्त ने पुन: पाण्‍डुपुत्र अर्जुन की ओर अपने हाथी को हाँक दिया। बुद्धिमान वज्रदत्त के द्वारा हाँके जाने पर वह गजराज पाण्‍डुपुत्र अर्जुन की ओर इस प्रकार दौड़ा, मानो आकाश में उड़ जाना चाहता हो। उस गजराज ने अपनी सूँड से छोड़े गये जलकणों द्वारा गुडाकेश अर्जुन को भिगो दिया। मानो मेघ ने नील पर्वत पर जल के फुहारे डाल दिये हों। राजा से प्रेरित होकर बारंबार मेघ के समान गम्‍भीर गर्जना करता हुआ वह हाथी अपने मुख के चीत्‍कारपूर्ण कोलाहल के साथ अर्जुन पर टूट पड़ा।

राजन वज्रदत्त का हाँका हुआ वह गजराज नृत्‍य-सा करता हुआ तुरंत कौरव महारथी अर्जुन के पास जा पहुँचा। वज्रदत्त के उस हाथी को आते देख शत्रुओं का संहार करने वाले बलवान अर्जुन गाण्डीव का सहारा लेकर तनिक भी विचलित नहीं हुए। भरतनन्‍दन! वज्रदत्त के कारण जो कार्य में विघ्न पड़ रहा था, उसको तथा पहले के वैर को याद करके पाण्‍डुपुत्र अर्जुन उस राजा पर अत्‍यन्‍त कुपित हो उठे। क्रोध में भरे पाण्‍डुकुमार अर्जुन ने अपने बाण समूहों द्वारा उस हाथी को उसी तरह रोक दिया, जैसे तट की भूमि उमड़ते हुए समुद्र को रोक देती है। उसके सारे अंग में बाण धंसे हुए थे। अर्जुन के द्वारा रोका गया वह शोभाशाली गजराज कांटों वाली साही के समान खड़ा हो गया। अपने हाथी को रोका गया देख भगदत्तकुमार राजा वज्रदत्त क्रोध से व्‍याकुल हो उठा और अर्जुन पर तीखे बाणों की वर्षा करने लगा। परन्‍तु महाबाहु अर्जुन ने अपने शत्रुघाती सायकों द्वारा उन सारे बाणों को पीछे लौटा दिया। वह एक अद्भुत-सी घटना हुई।

तब प्राग्ज्योतिषपुर के स्‍वामी राजा वज्रदत्त ने अत्‍यन्‍त कुपित हो अपने पर्वताकार गजराज को पुन: बलपूर्वक आगे बढ़ाया। उसे बलपूर्वक आक्रमण करते देख इन्‍द्रकुमार अर्जुन ने उस हाथी के ऊपर एक अग्नि के समान तेजस्‍वी नाराच चलाया। राजन! उस नाराच ने हाथी के मर्म स्‍थानों में गहरी चोट पहुँचायी। वह वज्र के मारे हुए पर्वत की भाँति सहसा पृथ्‍वी पर ढह पड़ा। अर्जुन के बाण से घायल होकर गिरता हुआ वह हाथी ऐसी शोभा पाने लगा, मानो वज्र के आघात से अत्‍यन्‍त पीड़ित हुआ महान पर्वत पृथ्‍वी में समा जाना चाहता हो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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