चतु:सप्ततितम (74) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: चतु:सप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! कुरुक्षेत्र के युद्ध में जो त्रिगर्त वीर मारे गये थे, उनके महारथी पुत्रों और पौत्रों ने किरीटधारी अर्जुन के साथ वैर बांध लिया था। त्रिगर्त देश में जाने पर अर्जुन का उन त्रिगर्तों के साथ घोर युद्ध हुआ था। ‘पाण्डवों का यज्ञ सम्बन्धी उत्तम अश्व हमारे राज्य की सीमा में आ पहुँचा है’ यह जानकर त्रिगर्तवीर कवच आदि से सुसज्जित हो पीठ पर तरकस बाँधे सजे–सजाये अच्छे घोड़ों से जुते हुए रथ पर बैठकर निकले और उस अश्व को उन्होंने चारों ओर से घेर लिया। राजन! घोड़े को घेरकर वे उसे पकड़ने का उद्योग करने लगे। शत्रुओं का दमन करने वाले अर्जुन यह जान गये कि वे क्या करना चाहते हैं। उनके मनोभाव का विचार करके वे उन्हें शान्तिपूर्वक समझाते हुए युद्ध से रोकने लगे। किंतु वे सब उनकी बात की अवहेलना करके उन्हें बाणों द्वारा चोट पहुँचाने लगे। तमोगुण और रजोगुण के वशीभूत हुए उन त्रिगर्तों को किरीट ने युद्ध से रोकने की पूरी चेष्टा की। भारत! तदनन्तर विजयशील अर्जुन हँसते हुए से बोले– ‘धर्म को न जानने वाले पापात्माओं! लौट जाओ। जीवन की रक्षा में ही तुम्हारा कल्याण है।' वीर अर्जुन ने ऐसा इसलिये कहा कि चलते समय धर्मराज युधिष्ठिर ने यह कहकर मना कर दिया था कि ‘कुन्तीनन्दन! जिन राजाओं के भाई–बन्धु कुरुक्षेत्र युद्ध में मारे गये हैं, उनका तुम्हें वध नहीं करना चाहिये।’ बुद्धिमान धर्मराज के इस आदेश को सुनकर उसका पालन करते हुए ही अर्जुन ने त्रिगर्तों को लौट जाने की आज्ञा दी तथापि वे नहीं लौटे। तब उसे युद्ध स्थल में त्रिगर्तराज सूर्यवर्मा के सारे अंगों मे बाण धँसकर अर्जुन हँसने लगे। यह देख त्रिगर्तदेशीय वीर रथ की घरघराहट और पहियों की आवाज से सारी दिशाओं को गुँजाते हुए वहाँ अर्जुन टूट पड़े। राजेन्द्र! तदनन्तर सूर्यवर्मा ने अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए अर्जुन पर झुकी हुई गांव वाले एक सौ बाणों का प्रहार किया। इसी प्रकार उसके अनुयायी वीरों में भी जो दूसरे–दूसरे महान धनुर्धर थे, वे भी अर्जुन को मार डालने की इच्छा से उन पर बाणों की वर्षा करने लगे। राजन! पाण्डुपुत्र अर्जुन ने अपने धनुष की प्रत्यञ्चा से छूटे हुए बहुसंख्यक बाणों द्वारा शत्रुओं के बहुत–से बाणों को काट डाला। वे कटे हुए बाण टुकड़े–टुकड़े होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। (सूर्यवर्मा के परास्त होने पर) उसका छोटा भाई केतुवर्मा जो एक तेजस्वी नवयुवक था, अपने भाई का बदला लेने के लिये यशस्वी वीर पाण्डुपुत्र अर्जुन के साथ युद्ध करने लगा। केतुवर्मा को युद्ध स्थल में धावा करते देख शत्रु वीरों का संहार करने वाले अर्जुन ने अपने तीखे बाणों से उसे मार डाला। केतुवर्मा के मारे जाने पर महारथी धृतवर्मा रथ के द्वारा शीघ्र ही वहाँ आ धमका और अर्जुन पर बाणों की वर्षा करने लगा। धृतवर्मा अभी बालक था तो भी उसकी फुर्ती को देखकर महातेजस्वी पराक्रमी अर्जुन बड़े प्रसन्न हुए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज