महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 23 श्लोक 1-18

त्रयोविंश (23) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (आश्रमवास पर्व)

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महाभारत: आश्रमवासिक पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


सेना सहित पांडवों की यात्रा और उनका कुरुक्षेत्र में पहुँचना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर भरतकुलभूषण राजा युधिष्ठिर ने लोकपालों के समान पराक्रमी अर्जुन आदि वीरों द्वारा सुरक्षित अपनी सेना को कूच करने की आज्ञा दी। "चलने को तैयार हो जाओ, तैयार हो जाओ" इस प्रकार उनका प्रेमपूर्ण आदेश प्राप्त होते ही घुड़सवार सब ओर पुकार-पुकार कर कहने लगे- "सवारियों को जोतो, जोतो।" इस तरह की घोषणा करने से वहाँ महान कोलाहल मच गया। कुछ लोग पालकियों पर सवार होकर चले और कुछ लोग महान वेगशाली घोड़ों द्वारा यात्रा करने लगे। कितने ही मनुष्य प्रज्वलित अग्नि के समान चमकीले सुवर्णमय रथों पर आरूढ़ होकर वहाँ से प्रस्थित हुए।

नरेश्वर! कुछ लोग गजराजों पर सवार थे और कुछ ऊँटों पर। कितने की बघनखों और भालों से युद्ध करने वाले वीर पैदल ही चल रहे थे। नगर और जनपद के लोग भी राजा धृतराष्ट्र को देखने की इच्छा से नाना प्रकार के वाहनों द्वारा कुरुराज युधिष्ठिर का अनुसरण करते थे। राजा युधिष्ठिर के आदेश से सेनापति कृपाचार्य भी सेना को साथ लेकर आश्रम की ओर चल दिये। तत्पश्चात ब्राह्मणों से घिरे हुए कुरुराज युधिष्ठिर बहुसंख्यक सूत, मागध और वन्दीजनों के मुख से अपनी स्तुति सुनते हुए मस्तक पर श्वेत छत्र धारण किये विशाल रथ सेना के साथ वहाँ से चले।

भयंकर पराक्रम करने वाले पवनपुत्र भीमसेन पर्वताकार गजराजों की सेना के साथ जा रहे थे। उन गजराजों की पीठ पर अनेकानेक यन्त्र और आयुध सुसज्जित किये गये थे। माद्रीकुमार नकुल और सहदेव भी घोड़ों पर सवार थे और घुड़सवारों से ही घिरे हुए शीघ्रतापूर्वक चल रहे थे। उन्होंने अपने शरीर में कवच और घोड़ों की पीठ पर ध्वज बाँध रखे थे। महातेजस्वी जितेन्द्रिय अर्जुन श्वेत घोड़ों से जुते हुए सूर्य के समान तेजस्वी दिव्यरथ पर आरूढ़ हो राजा युधिष्ठिर का अनुसरण करते थे। द्रौपदी आदि स्त्रियाँ भी शिबिकाओं में बैठकर दीन-दु:खियों को असंख्य धन बाँटती हुई जा रही थीं। रनिवास के अध्यक्ष सब ओर से उनकी रक्षा कर रहे थे।

पांडवों की सेना में रथ, हाथी और घोड़ों की अधिकता थी। उसमें कहीं वंशी बजती थी और कहीं वीणा। भरतश्रेष्ठ! इन वाद्यों की ध्वनि से निनादित होने के कारण वह पाण्डव सेना उस समय बड़ी शोभा पा रही थी। प्रजानाथ! वे कुरुश्रेष्ठ वीर नदियों के रमणीय तटों तथा अनेक सरोवरों पर पड़ाव डालते हुए क्रमशः आगे बढ़ते गये। महातेजस्वी युयुत्सु और पुरोहित धौम्य मुनि युधिष्ठिर के आदेश से हस्तिनापुर में ही रहकर राजधानी की रक्षा करते थे। उधर राजा युधिष्ठिर क्रमशः आगे बढ़ते हुए परमपावन यमुना नदी को पार करके कुरुक्षेत्र में जा पहुँचे। कुरुनन्दन! वहाँ पहुँचकर उन्होंने दूर से ही बुद्धिमान राजर्षि शतयूप तथा धृतराष्ट्र के आश्रम को देखा। भरतभूषण! इससे उन सब लोगों को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने उस वन में महान कोलाहल फैलाते हुए अनायास ही प्रवेश किया।


इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिक पर्व के अन्तर्गत आश्रमवास पर्व में युधिष्ठिर आदि का धृतराष्ट्र के आश्रम पर गमन विषयक तेईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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