प्रथम (1) अध्याय: आदि पर्व (अनुक्रमणिका पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 221-245 का हिन्दी अनुवाद
महाराज! पिछले युग में इन राजाओं के अतिरिक्त दूसरे और बहुत से महारथी, महात्मा, शौर्य-वीर्य आदि सद्गुणों से सम्पन्न, परमपराक्रमी राजा हो गये हैं। जैसे- पूरु, कुरु, यदु, शूर, महातेजस्वी विष्वगश्व, अणुह, युवनाश्व, ककुत्स्थ, पराक्रमी रघु, विजय, वीतिहोत्र, अंग, भव, श्वेत, बृहद्गुरू, उशीनर, शतरथ, कंक, दुलिदुह, द्रुम, दम्भोद्भव, पर, वेन, सगर, संकृति, निमि, अजेय, परशु, पुण्ड्र, शम्भु, निष्पाप देवावृध, देवाह्बय, सुप्रतिम, सुप्रतीक, बृहद्रथ, महान, उत्साही और महाविनयी सुक्रतु, निषधराज नल, सत्यव्रत, शान्तभय, सुमित्र, सुबल, प्रभु, जानुजंघ, अनरण्य, अर्क, प्रियभृत्य, शुचिवृत, बलबन्धु, निरामर्द, केतुश्रृंग, बृहद्बल, धृष्टकेतु, बृहत्केतु, दीप्तकेतु, निरामय, अवीक्षित, चपल, धूर्त, कृतबन्धु, दृढेषुधि, महापुराणों में सम्मानित प्रत्यंग, परहा और श्रुति- ये और इनके अतिरिक्त दूसरे सैकड़ों तथा हजारों राजा सुने जाते हैं, जिनका सैकड़ों बार वर्णन किया गया है और इनके सिवा दूसरे भी, जिनकी संख्या पद्मों में कही गयी है, बड़े बुद्धिमान और शक्तिशाली थे। महाराज! किंतु वे अपने विपुल भोग वैभव को छोड़कर वैसे ही मर गये, जैसे आपके पुत्रों की मृत्यु हुई है। जिनके दिव्य कर्म, पराक्रम, त्याग, माहात्म्य, आस्तिकता, सत्य, पवित्रता, दया और सरलता आदि सद्गुणों का वर्णन बड़े-बड़े विद्वान एवं श्रेष्ठतम कवि प्राचीन ग्रन्थों में तथा लोक में भी करते रहते हैं, वे समस्त सम्पत्ति और सदगुणों से सम्पन्न महापुरुष भी मृत्यु को प्राप्त हो गये। आपके पुत्र दुर्योधन आदि तो दुरात्मा, क्रोध से जले भुने, लोभी एवं अत्यन्त दुराचारी थे। उनकी मृत्यु पर आपको शोक नहीं करना चाहिये। आपने गुरुजनों से सत शास्त्रों का श्रवण किया है। आपकी धारणाशक्ति तीव्र है, आप बुद्धिमान हैं और ज्ञानवान पुरुष आपका आदर करते हैं। भरतवंशशिरोमणे! जिनकी बुद्धि शास्त्र के अनुसार सोचती है, वे कभी शोक-मोह से मोहित नहीं होते। महाराज! आपने पाण्डवों के साथ निर्दयता और अपने पुत्रों के प्रति पक्षपात का जो बर्ताव किया है, वह आपको विदित ही है। इसलिये अब पुत्रों के जीवन के लिये आपको अत्यन्त व्याकुल नहीं होना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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