सप्तत्यधिकशततम (170) अध्याय: आदि पर्व (चैत्ररथ पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: सप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 37-44 का हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार राजा संवरण उस सुन्दरी से बहुत कुछ कह गये; परंतु उसने उस समय उस निर्जन वन में उन कामपीड़ित नरेश को कुछ भी उत्तर नहीं दिया। राजा संवरण उन्मत्त की भाँति प्रलाप करते रह गये और वह विशाल नेत्रों वाली सुन्दरी वहीं उनके सामने ही बादलों में बिजली की भाँति अन्तर्धान हो गयी। तब वे नरेश कमलदल के समान विशाल नेत्रों वाली उस (दिव्य) कन्या को ढूढने के लिये वन में सब ओर उन्मत्त की भाँति भ्रमण करने लगे। जब कहीं भी उसे देख न सके, जब वे नृपश्रेष्ठ वहाँ बहुत विलाप करते-करते मूर्च्छित हो दो घड़ी तक निश्चेष्ट पड़े रहे। इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तर्गत चैत्ररथ पर्व में तपती-उपाख्यानविषयक एक सौ सत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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