महाभारत आदि पर्व अध्याय 128 श्लोक 1-18

अष्टाविंशत्यधिकशततम (128) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: अष्टाविंशत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


भीमसेन के न आने से कुन्‍ती आदि की चिन्‍ता, नागलोक से भीमसेन का आगमन तथा उनके प्रति दुर्योधन की कुचेष्टा

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्‍तर समस्‍त कौरव और पाण्‍डव क्रीड़ा और विहार समाप्त करके भीमसेन के बिना ही हस्तिनापुर की ओर प्रस्थित हुए। रथ, हाथी, घोड़े तथा अन्‍य अनेक प्रकार की सवारियों द्वारा वहाँ से चलकर वे आपस में यह कह रहे थे कि भीमसेन तो हम लोगों से आगे ही चल गये हैं। पापी दुर्योधन ने भीमसेन को वहाँ न देखकर अत्‍यन्‍त प्रसन्न हो भाइयों के साथ नगर में प्रवेश किया। राजा युधिष्ठिर धर्मात्‍मा थे, उनके पवित्र हृदय में दुर्योधन के पापपूर्ण विचार का भान तक न हुआ। वे अपने ही अनुमान से दूसरे को भी साधु ही देखते और समझते थे। भाई पर स्‍नेह रखने वाले कुन्‍तीनन्‍दन युधिष्ठिर उस समय माता के पास पहुँचकर उन्‍हें प्रणाम करके बोले- ‘मां! भीमसेन यहाँ आया है क्‍या?। मात:! वह कहाँ गया होगा? शुभे! यहाँ भी तो मैं उसे नहीं देख रहा हूँ। वहाँ हम लोगों ने भीमसेन के लिये उद्यान और वन का कोना-कोना खोज डाला। फिर भी जब वीरवर भीम को हम देख न सके, तब सबने यही समझ लिया कि वह हम लोगों से पहले ही चला गया होगा। महाभागे! हम उसके लिये अत्‍यन्‍त व्‍याकुल हृदय से यहाँ आये हैं। यहाँ आकर वह कहीं चला गया? अथवा तुमने उसे कहीं भेजा है? यशस्विनि! महाबाहु भीमसेन का पता बताओ। शोभने! वीर भीमसेन के विषय में मेरा हृदय शंकित हो गया है। जहाँ मैं भीमसेन को सोया हुआ समझता था, वहीं किसी ने उसे मार तो नहीं डाला?’

बुद्धिमान् धर्मराज के इस प्रकार पूछने पर कुन्‍ती ‘हाय-हाय’ करके घबरा उठी और युधिष्ठिर से बोली- ‘बेटा! मैंने भीम को नहीं देखा है। वह मेरे पास आया ही नहीं। तुम अपने छोटे भाइयों के साथ शीघ्र उसे ढूंढ़ने का प्रयत्न करो।’ कुन्‍ती का हृदय पुत्र की चिन्‍ता से व्‍यथित हो रहा था, उसने ज्‍येष्ठ पुत्र युधिष्ठिर से उपर्युक्त बात कहकर विदुरजी को बुलवाया और इस प्रकार कहा- ‘भगवन्! भीमसेन नहीं दिखायी देता, वह कहाँ चला गया? उद्यान से सब लोग अपने भाइयों के साथ चलकर यहाँ आ गये। किंतु अकेला महाबाहु भीम अब तक मेरे पास लौटकर नहीं आया!। वह सदा दुर्योधन की आंखों में खटकता रहता है। दुर्योधन क्रूर, दुर्बुद्धि, क्षुद्र, राज्‍य का लोभी तथा निर्लज्ज है। अत: सम्‍भव है, वह क्रोध में वीर भीमसेन को धोखा देकर मार भी डाले। इसी चिन्‍ता से मेरा चित्त व्‍याकुल हो उठा है, हृदय दग्‍ध-सा हो रहा है’। विदुरजी ने कहा- कल्‍याणी! ऐसी बात मुंह से न निकालो, शेष पुत्रों की रक्षा करो। यदि दुर्योधन को उलाहना देकर इस विषय में पूछ-ताछ की जायगी तो वह दुष्टात्‍मा तुम्‍हारे शेष पुत्रों पर भी प्रहार कर सकता है। महामुनि व्‍यास ने पहले जैसा कहा है, उसके अनुसार तुम्‍हारे ये सभी पुत्र दीर्घजीवी हैं, अत: तुम्‍हारा पुत्र भीमसेन कहीं भी क्‍यों न गया हो, अवश्‍य लौटेगा और तुम्‍हें आनन्‍द प्रदान करेगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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