महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 98 श्लोक 20-36

अष्टनवतितम (98) अध्याय :अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्टनवतितम अध्याय: श्लोक 20-36 का हिन्दी अनुवाद


फूल मन को आह्लाद प्रदान करता है और शोभा एवं सम्पत्ति का आधान करता है, इसलिये पुण्यात्मा मनुष्यों ने उसे सुमन कहा है। जो मनुष्य पवित्र होकर देवताओं को फूल चढ़ाता है, उसके ऊपर सब देवता संतुष्ट होते और उसके लिये पुष्टि प्रदान करते हैं। प्रभो! दैत्यराज जिस-जिस देवता के उद्देश्‍य से फूल दिये जाते हैं, वह उस पुष्पदान से दाता पर बहुत प्रसन्न होता और उसके मंगल के लिये सचेष्ट रहता है। उग्रा, सौम्या, तेजस्विनी, बहुवीर्या और बहुरूपा- अनेक प्रकार की औषधियां होती हैं।

उन सबको जानना चाहिये। अब यज्ञ सम्बन्धी तथा अयज्ञोपयोगी वृक्षों का वर्णन सुनो। असुरों के लिये हितकर तथा देवताओं के लिये प्रिय जो पुष्पमालाएँ होती हैं, उनका परिचय सुनो। राक्षस, नाग, यक्ष, मनुष्य और पितरों को प्रिय एवं मनोरम लगने वाली औषधियों का भी वर्णन करता हूँ, सुनो। फूलों के बहुत-से वृक्ष गांवों में होते हैं और बहुत-से जंगलों में। बहुतेरे वृक्ष जमीन को जोतकर क्यारियों में लगाये जाते हैं और बहुत-से पर्वत आदि पर अपने-आप पैदा होते हैं। इन वृक्षों में कुछ तो कांटेदार होते हैं और कुछ बिना कांटे के। इन सब में रूप, रस और गन्ध विद्यमान रहते हैं।

फूलों की गन्ध दो प्रकार की होती है- अच्छी और बुरी। अच्छी गन्ध वाले फूल देवताओं को प्रिय होते हैं। इस बात को ध्यान में रखो। प्रभो! जिन वृक्षों में कांटे नहीं होते हैं, उनमें जो अधिकांश श्वेतवर्ण वाले हैं, उन्हीं के फूल देवताओं को सदैव प्रिय हैं। कमल, तुलसी और चमेली- ये सब फूलों में अधिक प्रशंसित हैं। जल से उत्पन्न होने वाले जो कमल-उत्पल आदि पुष्प हैं, उन्हें विद्वान पुरुष गन्धर्वों, नागों और यक्षों को समर्पित करे।

अथर्ववेद में बतलाया गया है कि शत्रुओं का अनिष्ट करने के लिये किये जाने वाले अभिचार कर्म में लाल फूलों वाली कड़वी और कण्टकाकीर्ण औषधियों का उपयोग करना चाहिये। जिन फूलों में काँटे अधिक हों, जिनका हाथ से स्पर्श करना कठिन जान पड़े, जिनका रंग अधिकतर लाल या काला हो तथा जिनकी गन्ध का प्रभाव तीव्र हो, ऐसे फूल भूत-प्रेतों के काम आते हैं। अतः उनको वैसे ही फूल भेंट करने चाहिये।

प्रभो! मनुष्यों को तो वे ही फूल प्रिय लगते हैं, जिनका रूप-रंग सुन्दर और रस विशेष मधुर हो तथा जो देखने पर हृदय को आनन्ददायी जान पड़े। श्मशान तथा जीर्ण-शीर्ण देवालय में पैदा हुए फूलों को पौष्टिक कर्म, विवाह तथा एकान्त विहार में उपयोग नहीं करना चाहिये। पर्वतों के शिखर पर उत्पन्न हुऐ सुन्दर और सुगन्धित पुष्पों को धोकर अथवा उन पर जल के छींटे देकर धर्मशास्‍त्रों में बताये अनुसार उन्हें यथायोग्य देवताओं पर चढ़ाना चाहिये। देवता फूलों की सुगन्ध से, यक्ष और राक्षस उनके दर्शन से, नागगण उनका भलीभाँति उपभोग करने से और मनुष्य उनके दर्शन, गन्ध एवं उपभोग तीनों से ही संतुष्ट होते हैं। फूल चढ़ाने से मनुष्य देवताओं को तत्काल संतुष्ट करता है और संतुष्ट होकर वे सिद्धसंकल्प देवता मनुष्यों को मनोवांछित एवं मनोरम भोग देकर उनकी भलाई करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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