महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 76 श्लोक 1-12

षट्सप्ततितम (76) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: षट्सप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद


गोदान की वि‍धि, गौओं से प्रार्थना, गौओं के निष्‍क्रय और गोदान करने वाले नरेशों के नाम

युधिष्ठिर ने कहा- नरेश्‍वर! अब मैं गोदान की उत्तम विधि का यथार्थ रूप से श्रवण करना चाहता हूँ; जिससे प्रार्थी पुरुषों के लिये अभीष्ट सनातन लोकों की प्राप्ति होती है।

भीष्म जी ने कहा- पृथ्वीनाथ! गोदान से बढ़कर कुछ भी नहीं है। यदि न्यायपूर्वक प्राप्त हुई गौ का दान किया जाये तो वह समस्त कुल का तत्काल उद्धार कर देती है। राजन! ऋषियों ने सत्पुरुषों के लिये समीचीन भाव से जिस विधि को प्रकट किया है, वही इन प्रजाजनों के लिये भलीभाँति निश्चित किया गया है। इसलिये तुम आदिकाल से प्रचलित हुई गोदान की उस उत्तम विधि का मुझसे श्रवण करो।

पूर्वकाल की बात है, जब महाराज मान्धाता के पास बहुत-सी गौएँ दान के लिये लायी गयीं, तब उन्होंने ‘कैसी गौ दान करे?’ इस संदेह में पड़कर बृहस्पति जी से तुम्हारी ही तरह प्रश्‍न किया। उस प्रश्‍न के उत्तर में बृहस्पति जी ने इस प्रकार कहा- गोदान करने वाले मनुष्य को चाहिये कि वह नियमपूर्वक व्रत का पालन करे और ब्राह्मण को बुलाकर उसका अच्छी तरह सत्कार करके कहे कि 'मैं कल प्रातःकाल आपको एक गौ दान करूँगा', तत्पश्‍चात गोदान के लिये वह लाल रंग की (रोहिणी) गौ मंगाये और 'समंगे बहुले' इस प्रकार कहकर गाय को संबोधित करे, फिर गौओं के बीच में प्रवेश करके इस निम्नांकित श्रुति का उच्चारण करे-

'गौ मेरी माता है। वृषभ (बैल) मेरा पिता है। वे दोनों मुझे स्वर्ग तथा ऐहिक सुख प्रदान करें। गौ ही मेरा आधार है।'

ऐसा कहकर गौओं की शरण ले और उन्हीं के साथ मौनावलम्बनपूर्वक रात बिताकर सबेरे गोदान काल में ही मौन भंग करे- बोले। इस प्रकार गौओं के साथ एक रात रहकर उनके समान व्रत का पालन करते हुए उन्हीं के साथ एकात्मभाव को प्राप्त होने से मनुष्य तत्काल सब पापों से छूट जाता है।

राजन! सूर्योदय के समय बछड़े सहित गौ का तुम्हें दान करना चाहिये। इससे स्वर्गलोक की प्राप्ति होगी और अर्थवाद मन्त्रों में जो आशी: (प्रार्थना) की गयी है, वह तुम्हारे लिये सफल होगी। (वे मन्त्र इस प्रकार हैं, गोदान के पश्चात इनके द्वारा प्रार्थना करनी चाहिये) गौएँ उत्साहसम्पन्न, बल और बुद्धि से युक्त, यज्ञ में काम आने वाले अमृतस्वरूप हविष्य के उत्पत्ति स्थान, इस जगत की प्रतिष्ठा (आश्रय), पृथ्वी पर बैलों के द्वारा खेती उपजाने वाली, संसार के अनादि प्रवाह को प्रवृत्त करने वाली और प्रजापति की पुत्री हैं। यह सब गौओं की प्रशंसा है। सूर्य और चन्द्रमा के अंश से प्रकट हुई वे गौएँ हमारे पापों का नाश करें। हमें स्वर्ग आदि उत्तम लोकों की प्राप्ति में सहायता दें। माता की भाँति शरण प्रदान करें। जिन इच्छाओं का इन मन्त्रों द्वारा उल्लेख नहीं हुआ है, वे सभी गो माता की कृपा से मेरे लिये पूर्ण हों।

गौओ! जो लोग तुम्हारी सेवा करते हुए तुम्हारी आराधना में लगे रहते हैं, उनके उन कर्मों से प्रसन्न होकर तुम उन्हें क्षय आदि रोगों से छुटकारा दिलाती हो और ज्ञान की प्राप्ति कराकर उन्हें देहबन्धन से मुक्त कर देती हो। जो मनुष्य तुम्हारी सेवा करते हैं, उनके कल्याण के लिये तुम सरस्वती नदी की भाँति सदा प्रयत्नशील रहती हो। गोमाताओ! तुम हमारे ऊपर सदा प्रसन्न रहो और पुण्यों के द्वारा प्राप्त होने वाली अभीष्ट गति प्रदान करो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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