महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 71 श्लोक 53-55

एकसप्ततितम (71) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: एकसप्ततितम अध्याय: श्लोक 53-57 का हिन्दी अनुवाद


जो मनुष्य किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को सहस्र, शत, दस अथवा पांच गौओं का उनके अच्छे बछड़ों सहित दान करता है अथवा एक ही गाय देता है, उसके लिये वह गौ परलोक में पवित्र तीर्थों वाली नदी बन जाती है। प्राप्ति, पुष्टि तथा लोकरक्षा करने के द्वारा गौएँ इस पृथ्वी पर सूर्य की किरणों के समान मानी गयी हैं। एक ही ‘गो’ शब्द धेनु और सूर्य-किरणों का बोधक है। गौओं से ही संतति और उपभोग प्राप्त होते हैं; अतः गोदान करने वाला मनुष्य किरणों का दान करने वाले सूर्य के ही समान माना जाता है।

शिष्य जब गोदान करने लगे, तब उसे ग्रहण करने के लिये गुरु को चुने। यदि गुरु ने वह गोदान स्वीकार कर लिया तो शिष्य निश्‍चय ही स्वर्गलोक में जाता है। विधि के जानने वाले पुरुषों के लिये यह गोदान महान धर्म है। अन्य सब विधियाँ इस विधि में ही अन्तर्भूत हो जाती हैं। तुम न्याय के अनुसार गोधन प्राप्त करके पात्र की परीक्षा करने के पश्चात श्रेष्ठ ब्राह्मणों को उनका दान कर देना और दी हुई वस्तुओं को ब्राह्मण के घर पहुँचा देना। तुम पुण्यात्मा और पुण्यकार्य में प्रवृत्त रहने वाले हो; अतः देवता, मनुष्य तथा हम लोग तुम से ही धर्म की आशा रखते हैं।

ब्रह्मर्षे! धर्मराज के ऐसा कहने पर मैंने उन धर्मात्मा देवता को मस्तक झुकाकर प्रणाम किया और फिर उनकी आज्ञा लेकर मैं आपके चरणों के समीप लौट आया।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्‍तर्गत दानधर्म पर्व में यमराज का वाक्य नामक इकहत्तरवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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