महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 156 श्लोक 1-17

षट्पंचाशदधिकशततम (156) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासनपर्व: षट्पंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


अत्रि और च्यवन ऋषि के प्रभाव का वर्णन

भीष्म जी कहते हैं- युधिष्ठिर! उनके ऐसा कहने पर भी जब कार्तवीर्य अर्जुन कोई उत्तर न देकर चुप ही बैठा रहा, तब वायु देवता पुनः इस प्रकार बोले- 'हैहयश्रेष्ठ! अब तुम मुझसे महात्मा अत्रि के महान कर्म का वर्णन सुनो।

प्राचीन काल में एक बार देवता और दानव सब घोर अन्धकार में एक-दूसरे के साथ युद्ध करते थे। वहाँ राहु ने अपने बाणों से चन्द्रमा और सूर्य को घायल कर दिया था (इसलिये सब ओर घोर अन्धकार छा गया था)। नृपश्रेष्ठ! फिर तो अन्धकार में फँसे हुए देवता लोग कुछ सूझ न पड़ने के कारण एक साथ ही बलवान दानवों के हाथ से मारे जाने लगे। असुरों की मार खाकर देवताओं की प्राणशक्ति क्षीण हो चली और वे भागकर तपस्या में संलग्न हुए तपोधन विप्रवर अत्रि मुनि के पास गये। वहाँ उन्होंने उन क्रोधशून्य जितेन्द्रिय मुनि का दर्शन किया और इस प्रकार कहा- ‘प्रभो! असुरों ने अपने बाणों द्वारा चन्द्रमा और सूर्य को घायल कर दिया है और अब घोर अन्धकार छा जाने के कारण हम भी शत्रुओं के हाथ से मारे जा रहे हैं। हमें तनिक भी शान्ति नहीं मिलती है। आप कृपा करके हमारी रक्षा कीजिये।'

अत्रि ने कहा- 'मैं किस प्रकार आप लोगों की रक्षा करूँ?' देवता बोले- ‘आप अन्धकार को नष्ट करने वाले चन्द्रमा और सूर्य का रूप धारण कीजिये और हमारे शत्रु बने हुए इन डाकू दानवों का नाश कर डालिये।'

पृथ्वीनाथ! देवताओं के ऐसा कहने पर अत्रि ने अन्धकार को दूर करने वाले चन्द्रमा का रूप धारण किया और सोम के समान देखने में प्रिय लगने लगे। उन्होंने शान्तभाव से देवताओं की ओर देखा। उस समय चन्द्रमा और सूर्य की प्रभा मन्द देखकर अत्रि ने अपनी तपस्या से उस युद्धभूमि में प्रकाश फैलाया तथा सम्पूर्ण जगत को अन्धकारशून्य एवं आलोकित कर दिया। उन्होंने अपने तेज से ही देवताओं के शत्रुओं को परास्त कर दिया। अत्रि के तेज से उन महान असुरों को दग्ध होते देख अत्रि से सुरक्षित हुए देवताओं ने भी उस समय पराक्रम करके उन दैत्यों को मार डाला। अत्रि ने सूर्य को तेजस्वी बनाया, देवताओं का उद्धार किया और असुरों को नष्ट कर दिया।

अत्रि मुनि गायत्री का जप करने वाले, मृगचर्मधारी, फलाहारी, अग्निहोत्री और उत्तम तेज से युक्त ब्राह्मण हैं। उन्होंने जो सामर्थ्य दिखलाया, जैसा महान कर्म किया, उस पर दृष्टिपात करो। मैंने उन उत्तम महात्मा अत्रि का भी कर्म विस्तारपूर्वक बताया है। मैं कहता हूँ ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं। तुम बताओ अत्रि से श्रेष्ठ कौन क्षत्रिय है?' उनके ऐसा कहने पर भी अर्जुन चुप ही रहा। तब वायु देवता फिर कहने लगे- 'राजन! अब महात्मा च्यवन के माहात्म्य का वर्णन सुनो।'

पूर्वकाल में च्यवन मुनि ने अश्विनीकुमारों को सोमपान कराने की प्रतिज्ञा करके इन्द्र से कहा- ‘देवराज! आप दोनों अश्विनीकुमारों को देवताओं के साथ सोमपान में सम्मिलित कर लीजिये।'

इन्द्र बोले- 'विप्रवर! अश्विनीकुमार हम लोगों के द्वारा निन्दित हैं। फिर ये सोमपान के अधिकारी कैसे हो सकते हैं। ये दोनों देवताओं के समान प्रतिष्ठित नहीं हैं, अतः उनके लिये इस तरह की बात न कीजिये।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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