भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध

महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत 26वें अध्याय में भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों के वध का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

भीम द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध

संजय कहते हैं- राजन! भरतनन्दन! पाण्डुपुत्र भीमसेन के द्वारा आपकी गजसेना तथा दूसरी सेना का भी संहार हो जाने पर जब आपका पुत्र कुरुवंशी दुर्योधन कहीं दिखायी नहीं दिया, तब मरने से बचे हुए आपके सभी पुत्र एक साथ हो गये और समरांगण में दण्डधारी, प्राणान्तकारी यमराज के समान कुपित हुए शत्रुदमन भीमसेन को विचरते देख सब मिलकर उन पर टूट पड़े। दुर्मर्षण, श्रुतान्त (चित्रांग), जैत्र, भूरिबल (भीमबल), रवि, जयत्सेन, सुजात, दुर्विषह (दुर्विगाह), शत्रुनाशक दुर्विमोचन, दुष्प्रधर्ष (दुष्प्रधर्षण) और महाबाहु श्रुतर्वा ये सभी आपके युद्ध विशारद पुत्र एक साथ हो सब ओर से भीमसेन पर धावा करके उनकी सम्पूर्ण दिशाओं को रोक कर खड़े हो गये। महाराज! तब भीम पुनः अपने रथ पर आरूढ़ हो आपके पुत्रों के मर्मस्थानों में तीखे बाणों का प्रहार करने लगे। उस महासमर में जब भीमसेन आपके पुत्रों पर बाणों का प्रहार करने लगे, तब वे भीमसेन को उसी प्रकार दूर तक खींच ले गये, जैसे शिकारी नीचे स्थान से हाथी को खींचते हैं। तब रणभूमि में क्रुद्ध हुए भीमसेन ने एक क्षुरप्र से दुर्मर्षण का मस्तक शीघ्रतापूर्वक पृथ्वी पर काट गिराया। तत्पश्चात समस्त आवरणों का भेदन करने वाले दूसरे भल्ल के द्वारा महारथी भीमसेन ने आपके पुत्र श्रुतान्त का अन्त कर दिया। फिर हंसते-हंसते उन शत्रुदमन वीर ने कुरुवंशी जयत्सेन को नाराच से घायल करके उसे रथ की बैठक से नीचे गिरा दिया। राजन! जयत्सेन रथ से पृथ्वी पर गिरा और तुरंत मर गया।

मान्यवर नरेश! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए श्रुतर्वा ने गीध की पांख और झुकी हुई गांठ वाले सौ बाणों से भीमसेन को बींध डाला। यह देख भीमसेन क्रोध से जल उठे और उन्होंने रणभूमि में विष और अग्नि के समान भयंकर तीन बाणों द्वारा जैत्र, भूरिबल और रवि- इन तीनों पर प्रहार किया। उन बाणों द्वारा मारे गये वे तीनों महारथी वसन्त ऋतु मे कटे हुए पुष्पयुक्त पलाश के वृक्षों की भाँति रथों से पृथ्वी पर गिर पड़े। इसके बाद शत्रुओं को संताप देने वाले भीमसेन ने दूसरे तीखे भल्ल से दुर्विमोचन को मारकर मृत्यु के लोक में भेज दिया। रथियों में श्रेष्ठ दुर्विमोचन उस भल्ल की चोट खाकर अपने रथ से भूमि पर गिर पड़ा, मानो पर्वत के शिखर पर उत्पन्न हुआ वृक्ष वायु के वेग से टूट कर धराशायी हो गया हो। तदनन्तर भीमसेन ने आपके पुत्र दुष्प्रधर्ष और सुजात को रणक्षेत्र में सेना के मुहाने पर दो-दो बाणों से मार गिराया। वे दोनों महारथी वीर बाणों से सारा शरीर बिंध जाने के कारण रणभूमि में गिर पड़े। तत्पश्चात आपके पुत्र दुर्विषह को संग्राम में चढ़ाई करते देख भीमसेन ने एक भल्ल से मार गिराया। उस भल्ल की चोट खाकर दुर्विषह सम्पूर्ण धनुर्धरों के देखते-देखते रथ से नीचे जा गिरा। युद्धस्थल में एक मात्र भीम के द्वारा अपने बहुत-से भाइयों को मारा गया देख श्रुतर्वा अमर्ष के वशीभूत हो भीमसेन का सामना करने के लिये आ पहुँचा। वह अपने सुवर्णभूषित विशाल धनुष को खींचकर उसके द्वारा विष और अग्नि के समान भयंकर बहुतेरे बाणों की वर्षा कर रहा था।[1]

राजन! उसने उस महासमर में पाण्डुपुत्र के धनुष को काटकर कटे हुए धनुष वाले भीमसेन को बीस बाणों से घायल कर दिया। तब महाबली भीमसेन दूसरा धनुष लेकर आपके पुत्र पर बाणों की वर्षा करने लगे और बोले-‘खड़ा रह, खड़ा रह’। उस समय उन दोनों में विचित्र, भयानक और महान युद्ध होने लगा। पूर्वकाल में रणक्षेत्र में जम्भ और इन्द्र का जैसा युद्ध हुआ था, वैसा ही उन दोनों का भी हुआ। उन दोनों के छोड़े हुए यमदण्ड के समान तीखे बाणों से सारी पृथ्वी, आकाश, दिशाएं और विदिशाएं आच्छादित हो गयी। राजन! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए श्रुतर्वा ने धनुष लेकर अपने बाणों से रणभूमि में भीमसेन की दोनों भुजाओं और छाती में प्रहार किया। महाराज! आपके धनुर्धर पुत्र द्वारा अत्यन्त घायल कर दिये जाने पर भीमसेन का क्रोध भड़क उठा और वे पूर्णिमा के दिन उमड़ते हुए महासागर के समान बहुत ही क्षुब्ध हो उठे। आर्य! फिर रोष से आविष्ट हुए भीमसेन ने अपने बाणों द्वारा आपके पुत्र के सारथि और चारों घोड़ों को यमलोक पहुँचा दिया। अमेय आत्मबल से सम्पन्न भीमसेन श्रुतर्वा को रथहीन हुआ देख अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए उसके ऊपर पक्षियों के पंख से युक्त होकर उड़ने वाले बाणों की वर्षा करने लगे। राजन! रथहीन हुए श्रुतर्वा ने अपने हाथों में ढाल और तलवार ले ली। वह सौ चन्द्राकार चिह्नों से युक्त ढाल तथा अपनी प्रभा से चमकती हुई तलवार ले ही रहा था कि पाण्डुपुत्र भीमसेन ने एक क्षुरप्र द्वारा उसके मस्तक को धड़ से काट गिराया।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 26 श्लोक 1-22
  2. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 26 श्लोक 23-42

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