भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
गर्भ संकषर्ण
अपने उदर से निकले गर्भ को उन्होंने स्वप्न की भाँति देखा और फिर वह अदृश्य हो गया। इसके दो घड़ी तक उन्हें बहुत व्यथा रही। सहसा लगा–उनका उदर फिर पूर्ण हो गया है। पीड़ा शान्त हो गयी। निद्रा आ गयी। तभी उन्होंने तन्द्रा की दशा में देखा कोई अष्टभुजा तेजोमयी देवी सम्मुख खड़ी कह रही हैं– ‘देवि! क्षमा करना। तुम्हारे गर्भ का आकर्षण किया मैंने।’ मथुरा में कारागार में देवी देवकी भी पीड़ा से छटपटा उठी थीं उसी समय; किन्तु उन्हें भी तन्द्रा आ गयी शीघ्र। रोहिणी जी को पूरे वर्ष भर गर्भ रहा था। गोकुल में कई वृद्धाओं ने सन्देह किया था– ‘मूढ़गर्भ तो नहीं है यह?’ सचमुच वह मूढ़गर्भ ही था। योगमाया ने उसे रोहिणी के उदर कर्षित करके देवकी जी के सम्मुख डाल दिया था। ‘देवकी का गर्भपात हुआ है!’ प्रात:काल कंस की भेजी सेविका आयी तो उसी ने पहले कोलाहल मचाया। क्लान्त–श्रान्त देवकी जी तो तब भी तन्द्रा में ही थीं। देवकी के दिन जब से पूरे होने को आये थे, कंस बहुत सतर्क था। सेविका को बहुत शीघ्र कारागार आना पड़ता था और उसे तुरन्त लौटकर कंस को समाचार देना पड़ता था। उस दिन यह समाचार पूरे नगर में फैल गया। ‘देवकी का गर्भपात हुआ!’ नागरिकों में भय, ग्लानि आदि के भाव जागे। उस समय पिता के सामने पुत्र की मृत्यु ही अनहोनी घटना थी। किसी शिशु की मृत्यु–किसी का गर्भपात तो महान अनर्थ था। ‘वसुदेवजी परम धर्मात्मा हैं। देवकी तो साक्षात देवी हैं।’ लोगों को इस विषय में कोई मतभेद नहीं था– ‘यह कंस के पाप का परिणाम है। कंस के अधर्म से ही यह दुर्घटना हुई। पता नहीं, इस राजा के पाप का क्या-क्या कुपरिणाम प्रजा को भोगना पड़ेगा।’ लोग कहते डरते थे; किन्तु समझते यह थे कि कंस ने किसी औषधि-प्रयोग से गर्भपात करा दिया है। ‘देवकी का गर्भपात हुआ? तू ठीक समझती है?’ कंस ने सेविकाओं से पुन: पूछा। ‘मैं उस लोथड़े को स्वयं फेंक आयी हूँ। सेविका ने कहा– ‘आप कारागार पधारकर स्वयं सन्तुष्ट हो सकते हैं।’ कंस कारागार नहीं गया। देवकी के पास उसने परिचारिकायें भेज दीं। इस घटना के केवल पाँच दिन पीछे गोकुल में भाद्र शुक्ल षष्ठी को श्रीसंकर्षण का प्राकट्य हुआ। यद्यपि वसुदेव जी को यह समाचार कुछ देर से मिल सका। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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