भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
कंस का कारागार
मथुरा नरेश का भी एक कारागार था– केवल इतनी ही कहा जा सकता है। कारागार वैसे भी नगर के बाहर ही होता है। यमुना-किनारे ऊंची परिखा से घिरा एक छोटा-सा उपेक्षित कारागार था। पता नहीं, कब से उसका कोई उपयोग नहीं हुआ था। वृद्ध कारागार-रक्षक– वह अकेला ही था। कोई बन्दी कारागार में उसने अपनी आयु से देखा नहीं था। वह स्वयं कदाचित ही कभी कारागार के भीतर किसी प्रयोजन से जाता हो। कारागार के दो भाग कहने भर के लिए थे। एक पुरुष बन्दी के लिए और दूसरा स्त्री बन्दिनी के लिए। वैसे कोई कक्ष नहीं थे वहाँ। एक-एक हो लम्बे कक्ष थे। उनके द्वार अवश्य सुदृढ़ कपाटों से बन्द रहते थे और कारागार का विशाल बहिर्द्वार भी सदा बन्द ही रहता था। वर्ष में केवल एक बार कारागार के द्वार खुलते थे वर्षा ॠतु बीत जाने पर। महालक्ष्मी पूजन के पूर्व नगर की स्वच्छता होती तो कारागार की भी स्वच्छता हो जाती थी। अन्यथा वह उपेक्षित-अनुपयोगी भवन था। कंस ने जैसे ही सेना की व्यवस्था सम्हाली, उसका ध्यान कारागार की ओर गया था। उसे लगा था कि कभी भी इस गृह की आवश्यकता पड़ सकती है। अन्यथा महाराज उग्रसेन तथा उनके पूर्ववर्ती अनेक यादव नरपतियों को तो, कारागार भी मथुरा में है, यह बात विस्मृत हो चुकी थी। कंस ने कारागार की परिखा को दृढ़ करवाया था। उसे कुछ अधिक ऊंचा उठवा दिया था, द्वार-कपाट जीर्ण हो चुके थे, उन्हें बदलवा लिया था। कारागार के दोनों भागों के कूपों की भी स्वच्छता करायी थी उसने। महाराज ने तब पूछा था– ‘कारागार क्यों तुम्हें महत्त्व का लगता है?’ कंस ने कहा था– ‘कोई बन्दी कभी वहाँ रखना पड़ सकता है। ऐसा अवसर कब आवे, कौन जानता है। अत: उसे ठीक तो रहना ही चाहिये।’ तब किसे पता था कि स्वयं महाराज को ही अकस्मात बन्दी होकर वहाँ अनेक वर्षों तक रहना पड़ेगा। कंस ने वसुदेव - देवकी को जैसे ही कारागार पहुँचाया, उसने वहाँ अपने सैनिक-रक्षक नियुक्त कर दिये थे। महाराज उग्रसेन को वहाँ बन्द करके उसने तत्काल वृद्ध कारागार-रक्षक को वहाँ से चले जाने की आज्ञा दे दी। वह वृद्ध महाराज उग्रसेन के प्रति निष्ठावान होगा, यह बात कंस के ध्यान से बाहर नहीं थी। कंस ने उससे कहा–‘तुम अब कार्य करने योग्य नहीं हो। सैनिक अभी तुम्हारे आवास की सामग्री ले जाकर नगर में तुम्हें दूसरा निवास दे देंगे। तुमको निर्वाह-व्यय मिलेगा। कारागार के द्वारों की कुंजियाँ नवीन कारागार-रक्षक को दे दो।’ प्रचण्डकाय, कज्जलकृष्णवर्ण, उग्रस्वभाव एक असुर उसी समय कारागार-रक्षक नियुक्त हो गया। उसे पूरे बारह सहायक दिये गये। कंस ने आदेश दिया- ‘कम से कम तीन रक्षक सशस्त्र सदा कारागार के द्वार पर सावधान रहा करें।’ महाराज को बन्दी करके कंस लौटा और सीधे मन्त्रणा-कक्ष में जा बैठा। वसुदेव जी के भवन-प्रांगण और राजसभा की स्वच्छता की बात उसे नहीं सोचनी थी। उसके मन्त्रियों ने यह कार्य पहले ही हाथ में ले लिया था और सेवक नियुक्त कर दिये थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज