भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
उद्धव ब्रज गए
बहुत दिनों से उद्धव उत्सुक हैं– व्याकुल हैं कहना उचित होगा। ये श्रीकृष्ण चंद्र उनके आराध्य हैं तबसे जब उद्धव शिशु थे। उद्धव अपनी शैशव क्रीड़ा में भी कृष्णार्चन क्रीड़ा ही करते थे और इतनी तन्मता से करते थे कि माता के बार बार बुलाने पर भी अर्चा छोड़ कर भोजन प्रातरोश आदि को नहीं आते थे। तब तो देखा भी नहीं था उन्होंने इन मयूर मुकुटी वन माली को। तब उद्धव का अंतकरण इनकी प्रीति में पग चुका था और अब तो इन कृपा सागर ने अपना बना लिया है। अपने साथ रखते हैं–अतिशय स्नेह से रखते हैं। इनका प्रसाद चंदन, इनकी पहिनी माला, इनके वस्त्र और इनके थाल का उच्छिष्ट प्रसाद पाने का सौभाग्य मिल गया है–प्रतिदिन मिलता है। भाई वृहद्बल! तुमसे भी मेरा कुछ रहस्य रहा? श्रीकृष्ण चंद्र ने स्नेह स्निग्ध स्वर में कहा–तुमको भी मुझसे कुछ कहने–पूछने में संकोच करने को अवकाश रहा है? स्वामी! जब कभी आपके समीप अचानक एकांत में पहुँचा हूँ–आपके वात्सल्य ने मुझे यह अधिकार दे दिया है। उद्धव बहुत व्यथापूर्ण स्वर में बोल रहे हैं–आपके कमल लोचनों से अश्रु झरते देखता हूँ। आपको शोकग्रस्त सा–अत्यंत उदास, रुदन करते पाता हूँ। मेरे साथ रहते भी आप अनेक बार दीर्घश्वास लेने लगते हैं। आप आनंदघन के समीप यह व्यथा .....? उद्धव सिसकने लगे। उनके प्राण पता नहीं कबसे सिसकते हैं। उनके आराध्य श्रीकृष्ण और कोई ऐसी पीड़ा है जो इनके चित्त को भी मथित किए रहती है। जानता हूँ–आपके प्रसाद से ही जानता हूँ आपकी महिमा! निखिल ब्रह्मांड में ऐसा कुछ नहीं जो आपके श्रीचरों का स्मरण करने वाले के लिए अप्राप्य रह जाए। ऐसा कुछ नहीं जो आपका संकल्प न कर सकता हो। अभाव दुख, पीड़ा, आपके स्मरण से नि:शेष हो जाते हैं। आप यमुना तट पहुँचते यमुना का नाम लेने पर भी अपनी सहज प्रफुल्लता खो देते हैं। कोई गौ, कोई बछड़ा दीखा और लगता है कि आपके अंतर में कोई सुप्त पीड़ा जाग पड़ी है। अनेक रंग के वस्त्र हैं, अनेक पक्षी हैं, दधि नवनीत तो जैसे प्रबल निमित्त हैं ही– अनेक अवसरों पर तो मैं कहीं कोई भी निमित्त समझ नहीं पाता। आपके श्री अंग की कांति सहसा म्लान हो जाती है। आप हँसते बोलते अचानक मौन हो जाते हैं। अचानक अन्यमनस्क–दीर्घ नि:श्वास छोड़ने लगते हैं और एकांत में मैंने जब देखा, इन दृगों को झरते ही देखा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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