भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
मल्ल-युद्ध
कंस ने अपने को आश्वस्त किया– ‘यह ठीक है कि इन्होंने हाथी मार दिया; किन्तु यह नहीं हो सकता कि हाथी ने इन्हें थका न दिया हो। आज शिवरात्रि के दिन ये उपोषित भी होंगे। मल्लशाला में इतने मल्ल हैं। इनमें अनेक हैं जो उस महागज को मार दे सकते थे। कितनों को झेल सकेंगे ये?’ कंस ने बायें हाथ से संकेत करके मल्लशाला के सब द्वार बन्द करा दिये। उसे आज यहीं सब निर्णय कर लेना है। किसी को भागने का अवसर वह नहीं देना चाहता। ये दोनों किशोर हैं। थक जाने पर भाग सकते हैं। पता नहीं दौड़ने में इन्हें कोई पकड़ पावे या न पावे। इनके भाग जाने का अवसर नहीं होना चाहिये। कंस अब झुंझला रहा है कि ‘उसके मल्ल चुप क्यों खड़े हैं। वे इन दोनों को अखाड़े में क्यों खींच नहीं लेते हैं। नागरिकों की कानाफूसी बढ़ती जा रही है। इन्होंने भी गोपों को देख लिया है। अब उसी मंच की ओर मुड़ने ही वाले हैं।’ कंस ने मल्लों को संकेत किया। कंस के संकेत को चाणूर ने देख लिया। वह करूप देश में उत्पन्न हैं। मुष्टिक आन्धप्रदेशीय था; किन्तु दोनों युवावस्था में ही माहिष्मती नरेश की मल्लशाला में आ गये थे। कंस वहाँ से इन्हें ले आया था। चाणूर इस बात के लिए बहुत कुख्यात था कि वह प्रतिद्वन्द्वी मल्ल को पछाड़कर मार डालता है। वह तनिक आगे बढ़ा। गोपों के मंच की ओर मुड़ते राम-श्याम को उसने सम्बोधित किया– ‘कृष्ण, सुनो ! बलराम, तुम भी सुनो! हम सब लोग तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहे हैं। बड़ा अच्छा हुआ कि तुम लोग समय पर आ गये। तुम लोग मल्लयुद्ध में बहुत कुशल हो, यह सुनकर महाराज ने तुम्हारा नियुद्ध देखने के लिए तुम्हें बुलवाया है। महाराज तुम्हारी मल्लक्रीड़ा देखना चाहते हैं।’ ‘यह कैसी बात? क्या षड्यन्त्र है यह?’ गोप उद्विग्न हो उठे। नागरिक भी चौंके– ‘ये बालक मल्लयुद्ध में कुशल हैं, ऐसा किसने कहा? कंस को यह स्वप्न कैसे आया?’ सबके हृदय आशंका से व्यथित होने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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