भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
क्रूरता कटती गयी
मैया यशोदा ने कृष्ण को बांध दिया था ऊखल से। यह सुनकर देवकी जी खुलकर हँसी– ‘अच्छा किया उन्होंने। ऊधम करेगा तो माता बाँधेगी ही।’ ‘नन्दभवन के द्वार पर खड़े अर्जुन के दोनों वृक्ष अचानक गिर पड़ें बिना वायु के और कृष्ण उस समय वृक्षों के मध्य में था।’ सुनकर माता देवकी काँप गयीं– ‘उत्कच का उत्पात तो नहीं?’ महर्षि ने कहा कि उत्कच मर गया। वसुदेव जी बोले– ‘उनकी वाणी असत्य नहीं हो सकती; किन्तु कंस के पास असुरों का कहाँ अभाव है। कोई और गया होगा अदृश्य बनकर वहाँ।’ कंस के यहाँ से कोई उस समय भेजा गया हो, ऐसा पता नहीं लगा। कंस भी इस समाचार से प्रसन्न होकर बोला था– ‘लगता है कोई मित्र बिना मुझे सूचित किये मेरा हित करने वहाँ पहुँच गया था।’ इसके पीछे तो बहुत भयानक समाचार आया। गोकुल के आस-पास काले मुख वाले सैकड़ों बृक (भेड़िये) आ बसे हैं। उनका उपद्रव बढ़ता ही जा रहा है। वन्य पशुओं से जनपद की रक्षा करना राजा का कर्तव्य है; किन्तु कंस ने तो सुनकर अट्टहास किया– ‘गोप बलवान जाति है। लाठी बहुत चलाते हैं वे। उनको आखेट का अवसर मिलना चाहिये।’ सहसा समाचार आया कि नन्दराय ने अपने सब गोपों के साथ गोकुल त्याग दिया। सबको लेकर वे वहाँ से चले गये। वृहत्सानुपुर के समीप वृन्दारण्य में नन्दिकेश्वर पर स्थान बनाया है उन्होंने अपना। ‘बड़ा अच्छा हुआ।’ वसुदेव जी ने कहा– ‘कंस से कुछ दूर तो हो गये वे। वहाँ उनके मित्र हैं वृहत्सानुपुर के स्वामी वृषभानु जी। बालक वहाँ अधिक सुरक्षित रहेंगे।’ बालक तो बालक ही हैं। उन्हें वहाँ जाकर और अधिक मित्र मिल गये। गोप-बालकों में वैसे भी चपलता बहुत रहती है। नित्य नवीन ऊधम करने लगे हैं वे वहाँ। ‘कृष्ण चार वर्ष का होते-होते हठ करके बछड़े चराने वन में जाने लगा।’ मैया अनेक बार सोचती है– ‘यहाँ होता तो महर्षि गर्गाचार्य उपनयन कर देते उसका बड़े भाई के साथ, और पढ़ने चला जाता गुरुकुल पांच वर्ष का होने पर। अब वहाँ तो छोटे भाई के साथ बड़े को भी बछड़े ही चराने हैं।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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