भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
अटके प्राण
व्रज की तो तुलना तीन लोक में नहीं है। वहाँ के गोप, गोपी, गाय-बछड़े, पशु-पक्षी ही नहीं, तरु-तृण तक धन्य हैं, दिव्य हैं। उनकी बात–उनकी महिमा की बात, कौन करे। बात मथुरा की और उसमें भी महाराज कंस की? कंस के प्राण भी अधर में अटक गये हैं इन दिनों। ‘वही-वही है! वह नन्द का लड़का ही बनकर प्रकट हुआ है।’ पूतना के मरने का समाचार मिला और कंस को सन्देह नहीं रह गया कि उसे मारने वाला हरि गोकुल में ही है। गोकुल में–और गोकुल तो मथुरा के ठीक सामने यमुना के उस पार ही है। इतने समीप प्राणहर्ता आ गया–कब यमुना पार उतर आवे, कुछ पता नहीं। कंस का भय–उसकी चिन्ता सीमाहीन है। गोपराज नन्द कोई एकाकी असहाय वसुदेव तो नहीं है कारागार में पड़े कि कंस उनके पुत्र को मारने दौड़ जायेगा। नन्दराय व्रजपति हैं और कंस जानता है कि सम्पूर्ण व्रज के गोप उनकी रक्षा के लिए मर-मिटने को पलक मारते दौड़ पड़ेंगे। रोष में भरे गोप तो सभी के लिए–भले वह कितना भी वीर हो, भारी पड़ते हैं। एक बार गोपों से युद्ध की बात सोच भी ली जाय तो उस नन्द के शिशु का उपाय? शिशु है–यह सोचकर उसकी उपेक्षा कंस कैसे कर दे। छ: दिन की आयु में उसने पूतना को मार दिया है–उस पूतना को जो सुरेन्द्र–विजयी कंस को मल्लयुद्ध की चुनौती दे चुकी थी। उसे मार देने वाला शिशु है? कंस स्वयं अपने उस काल के सामने जाने का साहस नहीं कर सकता। अपने-आप दावाग्नि में कूद पड़ने की मूर्खता वह नहीं करेगा। सेना भी नहीं भेजी जा सकती। कोई ऐसा कार्य नहीं किया जा सकता, जिससे नन्द को, गोपों को अवसर मिले कंस के विरुद्ध शस्त्र उठाने का। ऐसा होने पर तो वह मायावी वामन से विराट बनने वाला मथुरा पर चढ़ दौड़ेगा। कूट प्रयत्न–छल से मारना ही एकमात्र मार्ग लगता है। कुछ हो भी जाय तो कंस अपने को अनजान-निर्दोष दिखलाने की स्थिति में बनाये रखना चाहता है। वह अपने श्रेष्ठतम-प्रबलतम समर्थकों को भेजेगा और उस नन्द के शिशु की हत्या करा देगा–यही एकमात्र मार्ग कंस के सम्मुख है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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