भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 66

भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

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अध्याय -1
अर्जुन की दुविधा और विषाद

 
5.धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुंगवः॥

धृष्टकेतु, चेकितान और वीर काशिराज, इनके साथ ही पुरुजित्, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य हैं।[1]

6.युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्य वीर्यवान् ।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥

पराक्रमी युधामन्यु और वीर उत्तमौजा, सुभद्रा का पुत्र द्रौपदी के पुत्र, ये सबके सब महारथी हैं। सौभद्र अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु का नाम है।

7.अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायक मम सैन्स्य संज्ञार्थ तान्ब्रवीमि ते ॥

हे ब्राह्मणों में श्रेष्ठ, अब हमारी सेना में जो प्रमुख नायक हैं, उनको भी जान लीजिए। आपकी सूचना के लिए मैं उनके नाम बताता हूँ।

द्विजात्तमः ब्राह्मणों में श्रेष्ठ। द्विज वह है, जिसने यज्ञोपवीत धारण किया हो। द्विज का शब्दार्थ है-जिसका दो बार जन्म हुआ है। शिक्षा का लक्ष्य है व्यक्ति को आत्मिक जीवन में दीक्षित कर देना। हम प्रकृति के जगत् में जन्म लेते हैं। हमारा दूसरा जन्म आत्मा के जगत् में होता है। तद् द्वितीय जनम, माता सावित्री, पिता तु आचार्यः। व्यक्ति प्रकृति के शिशु के रूप में उत्पन्न होता है और बढ़ता हुआ आत्मिक मनुष्यत्व तक पहुँचता है और आलोक का शिशु के रूप में उत्पन्न होता है और बढ़ता हुआ आत्मिक मनुष्यत्व तक पहुँचता है और आलोक का शिशु बन जाता है।

8.भवान्भीष्मष्च कर्णष्च कृपश्च समितिंजयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च॥
   
आप, भीष्म और कर्ण और युद्ध में विजयी होने वाला कृप, अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र ।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. धृतकेतु चेदियों का राजा है। चेकितान पाण्डवों की सेना का प्रसिद्ध योद्धा है। पुरुजित् और कुन्तिभोज दो भाई हैं। कभी-कभी पुरुजित् और कुन्तिभोज को एक भी माना जाता है। शैब्य शिबि जाति का राजा है।
  2. भीष्म वृद्ध राजर्षि हैं, जिसने धृतराष्ट्र और पाण्डु का पालन-पोषण किया था। कर्ण अर्जुन का सौतेला भाई है। कृप द्रोणाचार्य का साला है। अश्वत्थामा द्रोण का पुत्र है। विकर्ण धृतराष्ट्र कि सौ पुत्रों में से तीसरा है। सौमदत्त बाही कों के राजा सोमदत्त का पुत्र है।

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भगवद्गीता -राधाकृष्णन
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
परिचय 1
1. अर्जुन की दुविधा और विषाद 63
2. सांख्य-सिद्धान्त और योग का अभ्यास 79
3. कर्मयोग या कार्य की पद्धति 107
4. ज्ञानमार्ग 124
5. सच्चा संन्यास 143
6. सच्चा योग 152
7. ईश्वर और जगत 168
8. विश्व के विकास का क्रम 176
9. भगवान अपनी सृष्टि से बड़ा है 181
10. परमात्मा सबका मूल है; उसे जान लेना सब-कुछ जान लेना है 192
11. भगवान का दिव्य रूपान्तर 200
12. व्यक्तिक भगवान की पूजा परब्रह्म की उपासना की अपेक्षा 211
13. शरीर क्षेत्र है, आत्मा क्षेत्रज्ञ है; और इन दोनों में अन्तर 215
14. सब वस्तुओं और प्राणियों का रहस्यमय जनक 222
15. जीवन का वृक्ष 227
16. दैवीय और आसुरीय मन का स्वभाव 231
17. धार्मिक तत्त्व पर लागू किए गए तीनों गुण 235
18. निष्कर्ष 239
19. अंतिम पृष्ठ 254

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