भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन
अध्याय -1
अर्जुन की दुविधा और विषाद युद्ध मनुष्य-जाति के लिए दण्ड भी है और साथ ही साथ उसे स्वच्छ करने का साधन भी। परमात्मा निर्णायक होने के साथ-साथ उद्धारक भी है। वह संहार करता है। वह शिव और विष्णु है। ममका : : मेरे लोग[1]। यह ममत्व अर्थात् मेरा होने की भावना अहंकार का परिणाम है, जो सारी बुराई की जड़ है। यहाँ कौरवों के ममकार या स्वार्थ-भावना को स्पष्ट किया गया है, जिसके कारण सत्ता और प्रभुत्व के प्रति लोभ बढ़ता है। संजय : संजय अन्धे राजा धृतराष्ट्र का सारथी है और वह राजा को युद्ध की घटनाएं सुनाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ममेति कायन्तीति मामकाः, अविद्यापुरुषाः। - अभिनवगुप्त ।
- ↑ धृष्टद्युम्न पांचाल के राजा दु्रपद का पुत्र है।
- ↑ भीम युधिष्ठिर का प्रधान सेनापति है, यद्यपि कहने के लिए यह पद धृष्टद्युम्न को दे दिया गया है। अर्जुन कृष्ण का मित और पाण्डवों का महान् योद्धा है। युयुधान कृष्ण का सारथी है, जिसे सात्यकि भी कहा जाता है। विराट् वह राजा है, जिसके राज्य में पाण्डव लोग कुछ समय तक गुप्त रूप से रहे थे।
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