भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन
3.प्रमुख टीकाकार
गीता शताब्दियों से हिन्दू धर्म का एक प्राचीन धर्म ग्रन्थ मानी जाती रही है, जिसकी प्रामाणिकता उपनिषदों और ‘ब्रह्मसूत्र’ के बराबर है और ये तीनों मिलकर प्रामाणिक ग्रन्थत्रयी[1] कहलाती हैं। वेदान्त के आचार्यों के लिए यह आवश्यक हो गया कि वे अपने विशेष सिद्धान्तों को इन तीन प्रामाणिक ग्रन्थों के आधार पर उचित ठहराएं और इसीलिए उन्होंने इन पर टीकाएं लिखी, जिनमें उन्होंने यह प्रतिपादित किया कि किस प्रकार ये मूलग्रन्थ उनके विशिष्ट दृष्टिकोण की शिक्षा देते हैं। उपनिषदों में परब्रह्म के स्वभाव के सम्बन्ध में और संसार के साथ उसके सम्बन्ध के बारे में विभिन्न प्रकार के सुझाव विद्यमान हैं। ब्रह्मसूत्र इतना सामासिक और अस्पष्ट है कि उसमें से अनेक प्रकार के अर्थ निकाल लिए गये हैं। गीता में अपेक्षाकृत अधिक सुसंगत दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है, इसलिए उन टीकाकारों का काम अपेक्षाकृत अधिक कठिन हो जाता है, जो उसकी व्याख्या अपना मतलब निकालने के लिए करना चाहते है। भारत में बौद्ध धर्म के ह्रास के बाद विभिन्न मत उठ खड़े हुए, जिनमें से प्रमुख अद्वैत अर्थात द्वैत का न होना विशिष्टाद्वैत अर्थात सोपाधिक अद्वैत, द्वैत अर्थात दो की सत्ता को स्वीकार करना और शुद्धाद्वैत अर्थात विशुद्ध अद्वैत थे। गीता की विभिन्न टीकाएं आचार्यों द्वारा उनके अपने सम्प्रदायों के समर्थन और दूसरे सम्प्रदायों के खण्डन के लिए लिखी गईं। ये सब लेखक गीता में अपने-अपने धार्मिक विचारों और अधिविद्या की प्रणालियों को ढूंढ़ पाने में समर्थ हुए, क्योंकि गीता के लेखक ने यह सुझाव प्रस्तुत किया है कि वह शाश्वत सत्य, जिसे हम खोज रहे हैं और जिससे अन्य सब सत्य निकले हैं, किसी एक अकेले गुर में बांधकर बन्द नहीं किया जा सकता। फिर, इस धर्मग्रन्थ के अध्ययन और मनन से हमें उतना ही अधिक जीवित सत्य और आध्यात्मिक प्रभाव प्राप्त हो सकता है, जितना ग्रहण कर पाने में हम समर्थ हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्रस्थानत्रय
- ↑ ईसवी सन 788-820
- ↑ आनन्दगिरि शंकराचार्य की भगवद्गीता की टीका पर अपनी टीका में, दूसरे अध्याय के दसवें श्लोक में, कहता है कि वृत्तिकार ने, जिसने ब्रह्मसूत्र पर बड़ी विशाल टीका लिखी है, गीता पर भी एक वृत्ति या टीका लिखी थी, जिसमें यह बताया गया था कि न तो अकेला ज्ञान और न अकेला कर्म आध्यात्मिक मुक्ति तक ले जा सकता है, अपितु इन दोनों के सम्मिलित अभ्यास से हम उस लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं।
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