भगवद्गीता -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
आत्मान जायते म्रियते वा कदाचिन्- यह आत्मा न तो कभी पैदा होता है, न मरता है। होता हुआ, भविष्य में कभी न होने वाला भी नहीं है। अजन्मा, नित्य शाश्वत और पुरातन, यह देह के मारे जाने पर मारा नहीं जाता। वासांसि जीर्णानि यथा विहाय जिस प्रकार मनुष्य पुराने कपड़े उतार कर नये पहन लेता है, उसी प्रकार आत्मा भी जीर्ण शरीर त्याग कर नया धारण कर लेता है। अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च । वह छेदा, जलाया, भिगोया या सुखाया नहीं जा सकता। वह नित्य सर्वव्यापी, स्थिर, अचल और सनातन है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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