भगवद्गीता -राजगोपालाचार्य पृ. 10

भगवद्गीता -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य

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आत्मा

यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्यते ।
सर्वत्रावस्थितो देहे तथात्मा नोपलिप्यते ॥32॥[1]

जिस प्रकार सर्वव्यापी आकाश वस्तुओं में व्याप्त होने पर भी सूक्ष्म होने के कारण उनमें लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार आत्मा शरीर में सर्वत्र रहने पर भी निर्लिप्त रहता है।

यथा प्रकाशयत्येक: कृत्स्नं लोकमिमं रवि: ।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ॥33॥[2]

जैसे एक ही सूर्य समस्त पृथ्वी को प्रकाशित करता है वैसे ही आत्मा सम्पूर्ण शरीर को प्रकाश देता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 13-32
  2. दोहा नं0 13-33

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