भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
निर्बल का बल
हर एक श्रेणी के प्राणी को श्रीभगवान का स्मरण एवं आराधन हर समय करना आवश्यक है। यही कारण है कि भगवान के मंगलमय परमपवित्र चरित्रादि के श्रवणमनन के अधिकारी ज्ञानी-अज्ञानी, सिद्ध-साधक सभी हैं और सभी को उनके अनुरूप फल भी मिलता है। फिर वे उसे चाहें अथवा न चाहें। यद्यपि जो महापुरुष स्ववर्णाश्रम-धर्मानुसार भगवान की आराधना द्वारा निर्मलान्तःकरण होकर वेदान्तों के श्रवण-मनन-निदिध्यासन एवं तत्त्वसाक्षात्कार से कृतार्थ हो चुके हैं, उन्हें किसी की भी अपेक्षा नहीं होती, न उन्हें कुछ करने से प्रयोजन है, न उनका किसी से कुछ अर्थ ही है, बल्कि यदि उन्हें कुछ कर्त्तव्य बुद्धि हो तो उनकी तत्त्वज्ञता में भी संदेह किया जाता है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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