भक्ति

भक्ति शब्द की व्युत्पत्ति 'भज' धातु से हुई है, जिसका अर्थ 'सेवा करना' या 'भजना' है, अर्थात श्रद्धा और प्रेमपूर्वक इष्ट देवता के प्रति आसक्ति।

  • भारतीय धार्मिक साहित्य में भक्ति का उदय वैदिक काल से ही दिखाई पड़ता है। देवों के रूपदर्शन, उनकी स्तुति के गायन, उनके साहचर्य के लिए उत्सुकता, उनके प्रति समर्पण आदि में आनन्द का अनुभव ये सभी उपादान वेदों में यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं।
  • नारदभक्तिसूत्र में भक्ति को परम प्रेमरूप और अमृतस्वरूप कहा गया है।
  • व्यास ने पूजा में अनुराग को भक्ति कहा है।
  • गर्ग के अनुसार कथा श्रवण में अनुरक्ति ही भक्ति है।
  • ऋग्वेद के विष्णुसूक्त और वरुणसूक्त में भक्ति के मूल तत्त्व प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

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