विरह-पदावली -सूरदास
राग सारंग (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है-) सखी! माधव के बिना श्रीराधा के शरीर की सब उलटी दशा हो गयी-उनकी चन्द्रमा के समान शोभा तो छिप गयी (दूर हो गयी)। केवल कलंक की कालिमामय रह गयी है। उनकी अलकें, जो सर्प के समान (काली एवं लहरदार) थीं, वे (आज) उलझकर मानो लटें (जटाएँ) हो गयी हैं और (वे लटें) शरीररूपी वृक्ष में (इस भाँति ज्ञात होती हैं) मानो (उस तनरूपी वृक्ष में) वियोगरूपी लपट लग गयी हो। उसकी दुर्बलता ने सब शक्ति नष्ट कर दी है। आँखें जो कमल की पंखुड़ियों के समान थीं, उनकी सुन्दरता (मानो किसी ने) निचोड़ ली है। जैसे अग्नि का ताप लगने पर सोना पिघल जाता है, उस प्रकार उनके शरीर की धातुएँ जल गयी हैं। (वियोग में अस्थि, मांस सब गल जाता है।) केले के पत्ते के समान उनकी मनोहर पीठ अब ऐसी हो गयी है मानो उसे (पत्ते को) उलटकर रख दिया हो (क्योंकि अब उसमें रीढ़ की हड्डी दीखने लगी है)। हमारे स्वामी ने उसकी सब सुख-सम्पत्ति छीनकर (उसके) शरीर के लिये विपत्ति दे दी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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