विरह-पदावली -सूरदास
(192) (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है- सखी!) किसी का किसी (प्रिय) से वियोग न हो। श्रीराम और सीता का वियोग हुआ था, उस (वियोग) का घाव धीरे-धीरे धोने (दूर करने) पर भी क्या हुआ यह सबने देखा ? (श्री जानकी का मिलन नहीं हुआ, वे भूमि में प्रविष्ट हो गयीं।) मछली और पानी का वियोग हुआ, जिससे तड़प-तड़प कर (मछली ने) शरीर खो दिया (वह मर गयी)। चकोर और चकोरी का वियोग हुआ तो उन्होंने पूरी रात रोते हुए व्यतीत कर दी। (हम भी उनके वियोग में) रोती हुई वन (व्रज) में बैठी हैं, कोई हमारी बात तक नहीं पूछता। स्वामी का वियोग हो जाने से कोई उपाय (मिलन का) करते नहीं बनता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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