बहुत जुरे ब्रजबासी लोग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट नारायन


बहुत जुरे ब्रजबासी लोग।
सुरपति-पूजा मेटि गोबर्धन-पूजा-कैं संजोग।।
जोजन बीम एक अरु अगरौ, डेरा इहिं अनुमान।
ब्रजवासी नर-नारि अंत नहिं मानौ सिंधु-समान।।
इक आवत ब्रज ते इतहो कौं, इक इततैं ब्रज जात।
नंद लिए सब ग्वाइल सूर-प्रभु, आइ गए तहँ प्रात ।।830।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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