बरषि-बरषि धन ब्रज-तन हेरत।
मेघबर्त्त अपनी सैना कौं, खोझत है, फिरि टेरत।।
कहा बरषि अब लौं तुम कीनौ, राखत जलहिं छपाइ।
मूसलधार बरषि जल पाटौ, सात दिवस भयौ आइ।।
रिस करि-करि गरजत नभ, बरषत चाहत ब्रजहिं बहाइ।
सूर स्याम गिरि गोबरधन धरयौ, ब्रज जन कौं सुखदाइ।।878।।