बरनौ राधिका लाल -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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राग कान्हरा




बरनौ राधिका लाल।
रूप गुन उपमा न पावत नाग सुर नर व्याल।।
बारि जलसुत करन भूषन कुटिल हारक साल।
मनौ थल नव कमल अंकुर बिकस है भरमाल।।
सीस फूल दुकूल जल मै जोति जगमग जाल।
मनौ रवि पर प्रगट बिहरत छीन घन की माल।।
कबहुँ बिलठत पीठि दीठत कर कजल की ब्याल।
मनौ फूटे कनक कुंभहिं देखत दोऊ भाल।।
किंच ढकक हेम मडित सकस नवल प्रबाल।
मनौ भरि भरि अंक भेटत उमँगि पिय उठि लाल।।
सुभग नासा रदन की छवि परम सुरँग रसाल।
यौ मरकत सैल...................................................।।
जुगल जंघ ज़राइ जेहरि चलत मंद रसाल।
रूप गुन के ‘सूर’ बलि बलि मिलहु दीनदयाल।। 40 ।।

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