बनी ब्रज-नारि-सोभा भारि।
पगनि जेहरि लाल लँहगा, अंग पँच-रँग सारि।।
किंकिनी कटि, कनित कंकन, कर चुरी झनकार।
हृदय चौकी चमकि बैठी, सुभग मोतिन हार।।
कंठश्री दुलरी बिराजति, चिबुक स्यामल बिंद।
सुभग बेसरि ललित नासा, रीझि रहे नँद-नंद।।
स्रवन बर ताटंक की छबि, गौर ललित कपोल।
सूर-प्रभु बस अति भए हैं; निरखि लोचन लोल।।1043।।