बना दो बुद्धिहीन भगवान -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग आसावरी - तीन ताल


बना दो बुद्धिहीन भगवान।
तर्क-शक्ति सारी ही हर लो, हरो ज्ञान-विज्ञान ।
हरो सभ्यता , शिक्षा, संस्कृति, नये जगत की शान॥
विद्या-धन-मद हरो, हरो हे हरे! सभी अभिमान।
नीति-भीति से पिंड छुड़ाकर करो सरलता दान॥
नहीं चाहिये भोग-योग कुछ, नहीं मान-सम्मान।
ग्राम्य, गँवार बना दो, तृण-सम दीन, निपट निर्मान॥
भर दो हृदय भक्ति-श्रद्धा से करो प्रेमका दान।
प्रेमसिन्धु! निज मध्य डुबाकर मेटो नाम-निशान॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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