बनत नहीं जमुना को ऐबौ।
सुंदर स्याम घाट पर ठाढ़े, कहा कौन बिधि जैबौ।।
कैसें बसन उतारि धरैं हम कैसैं जलहिं समैबौ।
नंद-नँदन हमकौ देखँगे, कैसे करि जु अन्हैबौ।।
चोली, चीर, हार लै भाजत, सो कैसैं करि पैबौ।
अंकम भरि-भरि लेत सूर-प्रभु, काल्हि न इहिं पथ ऐबौ।।779।।