बड़ी भई नहिं गई लरिकाई।
बारेही के ढंग आजु लौं सदा आपनी टेक चलाई।।
अबहीं मचलि जाइगी तब पुनि, कैसैं मोसौं जाति बुझाई।
मानी हारि महरि मन अपनैं, बोलि लर्इ हँसि कै दुलराई।।
कंठ लगाइ लई अति हित सौं, पुनि-पुनि कहि मेरो रिसहाई।
सूरदास अति चतुर राधिका, राखि लई नीकैं चतुराई।।1718।।