बजाई बाँसुरी ब्रजराज मोहे ब्रजराज -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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राग काफी




बजाई बाँसुरी ब्रजराज (मोहे ब्रजराज)।
सुनि स्रवननि भवननि रहि सकी न नहि सुहात गृहकाज।।
मातु पिता पति पूत बंधु की तजी इन नैननि लाज।
हरे भरे द्रुम भरे झरे भए बृंदावन विष राज।।
गैया गोप गोठ गृह अँटके हंससुता भई थीर।
गन गँधर्व सब थकित भए है चलत न त्रिविध समीर।।
सुनि सुनि सकल ब्रज बधू धाई बिकल बावरी बेस।
रही न सम्हार हार उर अचल छुटे कंचुकी केस।।
सिव बिरंचि ससि सेस सारदा मधवा मगन भए।
रवि रथ रोकि रहे सुरपुर मैं बाजि बाग जुगए।।
‘सुर' नर मुनि थावर जंगम जड़ भए सबहि मन पग।
तजि धन धाम बाम गृह अँटकी ‘सूर’ स्याम कै संग।। 20 ।।

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