बंसी बनराज आजु आई रन जीति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ



बंसी बनराज आजु आई रन जीती।
मेटति है अपनै बल, सबहिन की रीति।।
बिडरे गज-जूथ सील, सैन-लाज भाजी।
घूँघट पट कोट टूटे, छूटै दृग ताजी।।
काहूँ पति-गेह तजे काहूँ तन-प्रान।
काहूँ सुख सरन लयौ, सुनत सुजत-गान।।
कोऊ पग परसि गए, अपने-अपने देस।
कोऊ रस रंक भए, हुते जे नरेस।।
देत मदन मारुत मिलि, दसौं दिसि दुहाई।
सूर श्रीगुपाल लाल, बंसी-बस माई।।650।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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