फिरि व्रज बसौ नंदकुमार -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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फिरि व्रज बसौ नंदकुमार।
हरि तिहारे विरह राधा, भई तन जरि छार।।
विनु अभूषन मै जु देखी, परी है बिकरार।
एकई रट रटत भामिनि, पीव पीव पुकार।।
सजल लोचन चुअत उनके, वहति जमुना धार।
विरह अगिनि प्रचंड उनकै, जरे हाथ लुहार।।
दूसरी गति और नाही, रटति बारंबार।
‘सूर’ प्रभु कौ नाम उनकैं, लकुट अंध अधार।।4108।।

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