विरह-पदावली -सूरदास
राग केदारौ (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है-) गोपाल! व्रज में फिर आ जाओ। हम तुम्हें महाराज नंद जी का कुमार कहेंगी और अब गोप नहीं कहेंगी। (तुम) सातों स्वरों से युक्त वंशीध्वनिरूपी नगाड़ा दसों दिशाओं में बजाते चलो; (क्योंकि) दिग्विजय के लिये (तो) व्रजयुवतियों का मण्डलरूपी राजाओं का समुदाय है ही जो तुम्हारे पैर पड़ेगा। गायों और सखाओं के रूप में श्रेष्ठ योद्धा सैनिक (तुम्हारे) साथ रहेंगे, (तथा घोड़ों के खुरों से उड़ने वाली धूलि के समान) गायों के खुरों से धूलि उड़ेगी। मयूरपिच्छ की चन्द्रिकारूपी छत्र सूर्यबिम्ब के समान तुम्हारे सिर पर शोभा देता ही है। भौंरेरूपी वन्दीजन तुम्हारा सुयश गायेंगे, कामदेव तुम्हारी आज्ञा पाकर वन की वृक्षलताओं के पुष्पों से सजाकर वस्त्र का भवन (तम्बू) बना देगा। सभी पशु-पक्षी तुम्हारे आज्ञापालक दूत, द्वारपाल तथा पहरेदार होंगे। हे स्वामी! अबकी बार आकर व्रज पर राज्य कीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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