फिरि फिरि कहा सिखावत मौन।
वचन दुसह लागत अलि तेरे, ज्यौ पजरे पर लौन।।
सृंगी, मुद्रा भस्म, त्वचामृग, अरु अवराधन पौन।
हम अबला अहीरि सठ मधुकर, धरि जानहिं कहि कौन।।
यह मत जाइ तिनहि तुम सिखवहु, जिनहिं आजु सब सोहत।
'सूरदास' कहुँ सुनौ न देखी, पोत सूतरी जोहत।।3690।।