फिरत बननि बृंदाबन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्‍हरौ


                                
फिरत बननि बृंदाबन, बंसीबट, सँकेत बट
नागर कटि काछे, खौरि केसरि की किए।
पीत बसन चँदन तिलक, मोर-मुकुट कुँडल-झलक
स्‍याम-घन-सुरंग-छलक, यह छबि तन लिए।
तनु त्रिभंग, सुभग अंग, निरखि लजत अति अनंग
ग्‍वाल-बाल लिए संग, प्रमुदित सब हिए।
सूर स्‍याम अति सुजान, मुरली-धुनि करत गान
ब्रज-जन-मन कौं महान, संतत सुख दिए।।460।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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