फिर तुम क्यों रीझे हो मुझ पर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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राग पूर्वी - तीन ताल


फिर तुम क्यों रीझे हो मुझपर? क्यों देते हो इतना प्यार?
क्यों पीछे-पीछे फिरते हो? क्यों करते ममता-विस्तार?
जाना, तुम अति ही भोले हो, या तुम हो अत्यन्त उदार!
निज स्वभाव वश दोषी में भी देख रहे गुण नित्य अपार॥
बिना हेतु नित देते रहते हो तुम इतना प्रेम ममत्व।
यही जानकर मुझ अधमा में जाग उठा है यह विषमत्व॥
कर आरोप उसी का तुमपर देख रही तुम में वैषम्य।
पक्षपात वश करते मुझसे प्रेम, न जो सुधियों को क्षय॥
इसीलिये मुझ गर्वीली ने तुमको मान लिया अपना।
तुम पर नित अधिकार मानती, जागूँ या देखूँ सपना॥
तुम ही मेरे प्राणनाथ हो, हो सर्वस्व, एक आधार।
अपने ही गुण से जो मुझको सदा दे रहे इतना प्यार॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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