फल फलित होत फल-रूप जानैं -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग रामकली



फल फलित होत फल-रूप जानैं।
देखिहू सुनिहु नहिं ताहि अपनौ कहै, ताकी यह बात कोउ कैसै मानै।
ताहि कैं हाथ निरमोल नग दीजियै, जोइ नोकैं परखि ताहि जानै।
सूर कहि कूर तै दूर बसियै सदा, जमुन को नाम लीजै जु छानै।।223।।
 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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